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प्रकाशकीय
प्रज्ञा महर्षि, कविरत्न, उपाध्याय श्री अमरमुनिजी गहन विचारक, आगम वेत्ता, दार्शनिक एवं साहित्यकार हैं। साहित्य की सभी विधाओं में कविश्रीजी की तेजस्वी लेखनी प्रारम्भ से ही गतिशील रही है, और आज भी गतिशील है। परन्तु, साहित्य के क्षेत्र में सर्व प्रथम काव्य की, कविता की अजस्र धारा प्रवहमान हुई । इसलिए उपाध्यायश्रीजी सर्व प्रथम कवि के रूप में सामने आए और आज भी वे 'कविजी' के नाम से समाज में सुविक्षुत हैं ।
कविता एवं गीतों के साथ में आपने काव्य की भी रचना की। सत्य हरिश्चन्द्र और धर्मवीर सुदर्शन आपके दो काव्य हैं । सत्य-हरिश्चन्द्र एक ओर काव्य की दृष्टि से पूर्ण रचना है, वहाँ दूसरी ओर वह मानव मन में सत्य की, सत्कर्म की भावना जगा कर उसे जीवन - संघर्षों में अचल भाव से निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है । जीवन के अभ्युदय के लिए कविश्रीजी का यह महाकाव्य महत्त्वपूर्ण है।
बहुत लम्बे समय से पाठकों की मांग को ध्यान में रखकर द्वितीय संस्करण आपके कर-कमलों में समर्पित करते हुए प्रसन्नता की अनुभूति कर रहे हैं।
मंत्री, सन्मति ज्ञानपीठ
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