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सत्य हरिश्चन्द्र
राजकुमारी तारा देवी महारानी बन आई हैं, कौशल - जनपद में सावन - सी हर्ष - घटाएं छाई हैं ।। पुर अयोध्या की जनता ने तारा का स्वागत कीना, "कैसी सुन्दर यह जोड़ी है, धन्य धन्य, युग - युग जीना !" राजा - रानी दोनों ही नित प्रजा - पालन करते हैं, स्थूल भूमि पर सूक्ष्म प्रजा के मन में नित्य विचरते हैं । तारा की क्या महिमा कहनी, श्रेष्ठ सुन्दरी रानी है, धर्म • प्राण है, पति प्राण है, राजा के मन - मानी है। तन की, मन की सुन्दरता में लगी होड़ है अति भारी, तन से सुन्दर मन है, मन से सुन्दर तन की छवि न्यारी । पढ़ी लिखी विदुषी है, गृह के सर्व कार्य में निपुणा है, दयामयी है स्नेहमयी है, सदाऽशरणजन - शरणा है ।। सम्राज्ञी के ऊँचे पद की कभी नहीं छलना छलती, छोटे - से - छोटे जन से भी स्नेह - भावना से मिलती।
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