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मोह - निद्रा जीवन की गति विकट है, सदा न रहती एक, चित्त - महोदधि में सतत, उठती बीचि अनेक ! भारतीय - संस्कृति में सबने
गृही - गुणों को गाए हैं। पति - पत्नी स्वर्गीय मार्ग के,
अविचल पथिक बताए हैं । पति - पत्नी में जहाँ प्रेम का,
अमृत - सागर लहराता । दुःख - द्वन्द्व क्या कभी भूल कर,
वहां फटकने भी आता ? किन्तु प्रेम की सीमा है कुछ,
___सीमा ही जग - भूगण है। सीमा के बिन अच्छा से हाँ
अच्छा पथ भी दूषण है ।। रूप - मोहिनी तारा को पा,
राजा होश भुला बैठे। विषय - भोग के झूले पर सब,
निज कर्तव्य झुला बैठे। रात्रि - दिवस संकल्प - लोक में,
तारा, तारा, तारा है। राजनीति के परिचित पथ से,
___ इक दम किया किनारा है ।।
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