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करना चाहूँगा। वह वर्णन केवल बाहर की चर्म - चक्षु से ही नहीं, अपितु अन्दर की ज्ञान-चक्षु से भी देखा एवं अनुभव किया जाए, तो मैं समझता हूँ कि भयंकर-से-भयंकर पापाचारी भी अपने अंगी. कृत पापाचार से अर्थात् दुराचार एवं अनाचार से अवश्य हो अपने को मुक्त करना चाहेगा।
पद्मपुराण, पुराण - साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण पुराण है। उस में नरक के दुःखों का वर्णन तो है ही, जैसा कि मैं पूर्व में लिख आया है। साथ ही नरक के हेतुओं का जो वर्णन है, वह भी काफी महत्त्वपूर्ण है । मैं उसीका यहाँ संक्षेप में उल्लेख कर रहा हूँ । दत्तावधान होकर पढ़िएगा
दामिभकाश्च कृतघ्नाश्च ते वै निरय गामिनः । -भूमिखण्ड, ६६, ३.
-जो लोग छल-प्रपंच में लगे रहते हैं और किए गए उपकार की अवगणना करके कृतघ्न होते हैं, वे नरकगामी हैं ।
पुरुषाः पिशुनाश्चैव, मानिनोऽनतवादिनः । असम्बद्ध प्रलापाश्च से वै निरयगामिनः ॥६६, ५.
--जो व्यक्ति पिशुन-चुगलखर हैं, अभिमानी हैं, असत्य भाषी हैं, असम्बद्ध प्रलाप करने वाले हैं, वे नरकगामी हैं।
ये परस्वापहर्तारः परदूषण-सूचकाः। परस्त्रीगामिनी ये च ते वै निरयगामिनः ॥६६, ६.
----जो दूसरों के धन-संपत्ति का अपहरण करते हैं, द्वेष वश जो दूसरो के दूषणों का प्रचार करते हैं, और जो परस्त्री गामी हैं, वे नरकगामी हैं।
प्राणिनां प्राणहिंसायां ये नरा निरत: सदा। परनिन्दारता ये वै ते वै निरयगामिनः ॥६६, ७.
-जो प्राणियों के प्राणों की हत्या में सदा संलग्न रहते हैं और पर-निन्दा में अनुरत रहते हैं, वे नरकगामी हैं।
सुकपानां तडागानां प्रपानां च परन्तप ! सरसांचव भेत्तारो नरा निरयगामिनः । ६६, ८.
--जो स्वच्छ कूपों, तडागों, प्रपाओं (प्याऊ) और सरोवरों का उद्भेदन करते हैं, उन्हें नष्ट करते हैं, वे नरकगामी हैं । ८४
चिन्तन के झरोखे से।
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