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________________ लगा कि अब तो मर ही जाऊँगा । अतः उनके मन में विचार आया कि संथारा कर लू। साथ के उतावले व्यग्र साधुओं तथा श्रावकों ने भी यही प्रेरणा दी। अतः जल्दी में संथारा कर लिया गया । वह बीमारी कुछ ऐसी थी कि तपस्या से जो विकार थे, वे शान्त हो गए और वह सन्त स्वस्थ हो गया। स्वस्थ होने के बाद भी कुछ दिन और निकाल दिए । परन्तु, उसके बाद उसे बुभुक्षा सताने लगी, मन की शान्ति भंग होने लगी, तो उसने पास में जो सन्त थे, उन्हें कहा-"मुझे भूख लगी है, अब उसे सहन करना मेरे लिए कठिन है। अतः आहार ला कर दो।" साथ के साधु कहने लगे-"चुप रहो, बोलो मत । लोगों में, समाज में, और अपनी एवं दूसरी सम्प्रदायों में अपयश फैलेगा। चुपचाप भूखे रहकर मत्यु का वरण करो।" उसने स्पष्ट कहा-"मेरे से इस तरह मरा नहीं जाता।" और, इस तरह हठ पूर्वक जबरदस्ती मरना या मरने देना, न तो संथारा है, न धर्म है और न भगवान् की आज्ञा है । संथारे में ही स्पष्ट उल्लेख है-"सव्व समाहि वत्तियागारेणं :" विषम भाव में मरना श्रेयस्कर भी नहीं है । संकल्प - विकल्पों में हाय - हाय करके मर भी गया, तो पता नहीं किस गति में जाएगा ? किन्तु, लोक-लज्जा के कारण यह नहीं सोचा साथ में रह रहे साधुओं ने एवं संघ के वरोष्ठ श्रावकों ने । साधु भी अज्ञान से ग्रस्त थे, और श्रावक भी। जब वह उनसे नहीं समझा, तो कहा थोड़े समय तक और ठहरो। गुरुदेव दूसरे गाँव में हैं, उन्हें सूचना दे देते हैं, उनके आने तक ठहरो। कुछ ही दिनों में गुरुजी भी आ गए। आगमों की जानकारी भी थी उन्हें । पर, उनमें भी सत्य को सामने रखने का साहस नहीं था। इसलिए उन्होंने भी यही कहा-संथारा कर लिया है, तो उसे पूरा कर ले। यदि पारणा करके कुछ दिन और जिन्दा रह भी गया, तो इससे क्या होगा? आखिर एक दिन तो मरना ही है। अच्छा है, अभी मर भी जाए, तो अपयश तो नहीं होगा। साधारण आदमी अपने कार्य को यश - अपयश पर तौलता है। चाहे विवाह - शादी हो या अन्य कार्य-कर्म-नाक का सवाल पहले सामने रहता है। परन्तु, कई वरीष्ठ साधु - साध्वी एवं संथारा विशुद्ध अध्यात्म साधना है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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