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________________ दीक्षा का अर्थबोध सत्य की खोज जीवन की सबसे बड़ी प्यास है। किन्तु, यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है मानव - जाति का कि बहुत कम लोग सत्य की इस प्यास को ठीक तरह महसूस कर पाते हैं। और, वे लोग तो अंगुलियों पर ही गिनती में आते हैं, जो इस प्यास को बुझाने के लिए यत्नशील होते हैं । सत्य का क्षीरसागर भरा है, किन्तु एक पूंट पीने के लिए भी कोई प्रस्तुत नहीं है। प्रथम तो प्यास ही नहीं लगती है, और लगती भी है, तो उस ओर गति नहीं होती। सत्य की खोज की दो दिशाएँ रही हैं, मानव-जाति की अब तक की चेतना में । एक दिशा बाहर में है, तो दूसरी दिशा अन्दर में है। एक बहिर्मुख है, तो दूसरी अन्तर्मुख है । जब मानव - मस्तिष्क ने बाहर में सत्य को खोजना प्रारम्भ किया, तो उसने जड़ प्रकृति तत्त्व को देखा, उसकी गहराई में पैठा, और परमाणु जैसे सूक्ष्म तत्त्व को और उसकी विराट शक्ति को खोज निकाला। मानव सभ्यता ने बड़ी शान के साथ परमाण युग में प्रवेश किया । और, यह उसी का चमत्कार है कि धरती पर का यह मिट्टी का मानव आज चन्द्रलोक में चहल-कदमी करने पहुँच गया है । परमाणु की खोज ने एक तरह से विश्व का मानचित्र ही बदल कर रख दिया है। - और, जब अन्दर में खोज प्रारम्भ हुई, तो परमात्म - तत्त्व को खोज निकाला । बाहर के विश्व से भी बड़ा एक विश्व मानव के अन्दर में रह रहा है। 'महतो महीयान्' की एक अनन्त ज्योति इस देह के मृत्पिण्ड में समायी हुई है। जिसे हम आत्मा कहते हैं, १४ चिन्तन के झरोखे से : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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