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ही बुद्धिमान होते हैं-वही युग वास्तव में मानव-जाति का श्रेष्ठ युग है। जैन-संस्कृति में भगवान् आदिनाथ एवं भगवान् महावीर के मध्य काल को सर्वश्रेष्ठ काल माना है-अतः उस युग को"मज्झिमा उज्जुपण्णा य" कह कर मध्यकाल के ऋजु - प्राज्ञ मनुष्यों को आदर्श बताया गया है।
यदि आर्जव - मार्दव आदि आन्तरिक सद्गुणों के विकास का प्रयत्न करना है, तो हमें यह याद रखना है-सरलता, सद्गुणों की जननी है, ऋजुता, धर्म को आधार भूमि है। हाँ ऋजुता के साथ हम प्रज्ञा की अवगणना न करें। याद रखिए, आपको सरल बनना है, पर बुद्ध नहीं। चतुर बनना है, पर धूर्त नहीं । 'भला' कहलाना है, भोला नहीं। बुद्ध पन, धूर्तता, और भोलापन ये मन के दोष हैं । सरलता, भलापन और चतुरता ये हृदय के सद्गुण हैं, जीवन को अलंकृत करने वाले बहुमूल्य अलंकार हैं । जनवरी १६७३.
एक धर्म हो, एक कर्म हो, एक हृदय हो, एक विचार । समतल हो साधक का गति-पथ, अन्दर • बाहर एक प्रकार ॥
एक - एक दीपक जुड़ने से, दीवाली हो जाती जगमग । एक - एक सद्गुण से जीवन, होता जन-जन-पूजित पग-पग ।।
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धर्म की बाधारभूमि : ऋजुता :
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