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________________ हो जाता है। कुटिल के साथ मित्रता कभी निभ सकती है ? नहीं। इसलिए भगवान् महावीर ने दशवकालिक सूत्र में कहा है __'माया मित्ताणि नासेई ।'-८,३८ -माया मित्रता को नष्ट कर डालती है। पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रिय सम्बन्धों को, पारस्परिक स्नेह एवं सद्भाव को समाप्त कर देती है। मैत्री - सम्बन्ध सरल एवं ऋजु मन पर निर्भर करता है, इसलिए आर्जव भाव को मैत्री का मूल केन्द्र माना गया है। तथागत बुद्ध ने कहा हैदार नमयन्ति तच्छका अत्तानं दमयन्ति पंडिता ।" -मज्झिमनिकाय, २, ३६, ४ -कुशल बढ़ई लकड़ी को सीधा करके उससे सून्दर खिलौने और विशाल भवन तैयार करता है, वैसे ही साधक आत्मा को सीधा - सरल बना कर विश्व-मैत्री का महल खड़ा कर लेता है। सरलता का अर्थ मूर्खता नहीं : आज के युग में 'सरलता' को कुछ दूसरा रूप दिया जाने लगा है। सरलता कहीं - कहीं मूर्खता का पर्याय समझी जाने लगी हैयह एक बड़ी भ्रान्ति है। वास्तव में कुछ लोग अपनी मूर्खताओं तथा गलतियों पर सरलता का आवरण डालने की चेष्टा करते रहे हैं, जिस कारण लोग सरल व्यक्ति को बुद्ध समझने लग गए हैं । भारतीय-संस्कृति में 'बुद्ध' शब्द सरल एवं विनीत व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता रहा है। जैन सूत्र उत्तराध्ययन एवं दशवकालिक तथा धम्मपद, सुत्तपिटक आदि बौद्धागम इसके साक्षी हैं। धीरे-धीरे लोगों ने सरलता में मूर्खता का आरोप करना शुरू किया और बुद्ध जैसा सुन्दर शब्द 'बुद्ध' के रूप में मूर्खता का वाचक समझा जाने लगा है । किन्तु, सरल होना और बात है, बुद्ध होना और । सरलता में विवेकशीलता की अपेक्षा रहती है । इसलिए हमें 'बुद्ध' सरल नहीं, किन्तु चतुर सरल होना चाहिए। सरलता के साथ चतुरता एवं बुद्धिमत्ता का मणि-कांचन संयोग करते हुए ही आज से पच्चीस सौ बर्ष पूर्व गणधर गौतम ने श्रावस्ती की सुप्रसिद्ध विचार सभा में 'ऋजु प्राज्ञ' शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने बताया था—जिस युग में मनुष्य 'ऋजु प्राज्ञ' होते हैं, सरल-साथ १२ चिन्तन के झरोखे से : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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