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________________ उसी का अनन्त विशुद्ध रूप ही तो परमात्म - तत्त्व है, जिसकी प्राचीन ऋषि-महर्षियों ने खोज की है। परमाणु और परमात्मा, दोनों ही सत्य के दो केन्द्र बिन्दु हैं। पहला जड़ पर आधारित है, तो दूसरा चेतन्य पर। पहले की खोज का माध्यम प्रयोग है,तो दूसरे की खोज का माध्यम योग है। दोनों की खोज में अन्तर केवल इतना ही है कि बाह्य जगत् की खोज में एक वैज्ञानिक की साधना दूसरे की साधना का आधार बन सकती है। पहले की खोज दूसरे के काम आ सकती है। पहले की साधना का उपयोग करके आगे आने वाला दूसरा अपनी साधना को आगे बढ़ा सकता है। इतना ही नहीं, वर्तमान के अपने सहयोगियों का साथ भी बाहर के विज्ञान की खोज में काफी सहायक सिद्ध हो सकता है। पर, जहाँ तक अन्तर-जगत की खोज का प्रश्न है, उसमें ऐसा कुछ नहीं है। हर साधक को अपने ही केन्द्र-बिन्दु से अपनी साधना का प्रारम्भ करना होता है। यहाँ दूसरे व्यक्ति की साधना या खोज कोई खास काम नहीं आती। यह ठीक है, कि अन्तर्जगत् की साधना के क्षेत्र में भी गुरु होते हैं, वे अपना अनुभव आने वाले शिष्यों को बताते हैं। और, उनका यह बताना, भविष्य के लिए अपना शास्त्र हो जाता है। गुरु और शास्त्र दोनों ही कुछ उपयोगिता तो रखते हैं, परन्तु यह उपयोगिता एक सीमा तक ही है। लक्ष्य - प्राप्ति में अन्तिम निर्णायक नहीं होती है-यह उपयोगिता । बाहर के आचार, विचार और व्यवहार में कुछ दूर तक गुरु और शास्त्र का उपयोग हो सकता है, मार्ग - दर्शन मिल सकता है, कुछ जानकारी भी हासिल की जा सकती है, किन्तु अपने अन्दर में पैठना तो अपने को ही होता है, दूसरा कौन किसके अन्दर में पैठ सकता है। अन्तर - जगत में प्रवेश करते ही गुरु और गुरु के शब्द बाहर ही रह जाते हैं, क्योंकि वे बाहर के हैं न ? जो बाहर का है, वह अन्दर में कैसे पैठ सकता है। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा था-"अपदस्स पदं नत्थि" अन्तर का आत्म तत्त्व अपद है, वह किसी शब्द द्वारा ग्राह्य एवं ज्ञातव्य नहीं है। वह किसी के दिए तर्क से भी दृष्टिगोचर नहीं होता है। महावीर ने इसी बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है-"तक्का तत्थ न विज्जई।" दीक्षा का अर्यबोध ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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