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________________ २. धर्म की आधार भूमि : ऋजुता यमुना तट पर कदम्ब की शीतल छाया में श्रीकृष्ण बैठे वंशी बजा रहे थे । गोपियां रूठी हुई-सी आई और बोली-"श्याम, अब तो हम तुम्हें प्यारी नहीं लगतीं। तुम इस वंशी से प्यार करने लगे हो, जब देखो तब यही तुम्हारे मुह-ओठों पर लगी रहती है।" श्रीकृष्ण मीठी हँसी के साथ मुस्करा कर बोले- "हाँ, सचमुच ही यह मुझे बहुत प्यारी है।" "आखिर कौन-सी बात है इसमें, जो हम में नहीं है"-ईर्ष्या से जलती हुई गोपियों ने अल्हड़ भाव से कहा। "इस वंशी की एक बात मुझे बहुत प्रिय लगी है" श्रीकृष्ण ने गोपियों के आरक्त चेहरों को देख कर कहा। "क्या ?" "यह बात कि वह सरल है, सीधी है, इसमें कहीं भी कोई गांठ नहीं है । जो चीज सीधी-सरल होती है, जिसके अन्दर कहीं कोई गाँठ नहीं होती, वह मुझे बहुत प्रिय लगती है।" श्रीकृष्ण के उत्तर पर गोपियाँ मौन भाव से अपने आप को टटोलने लग गईं-कहीं हमारे मन में तो कोई गाँठ नहीं है। श्रीकृष्ण को सरलता प्रिय थी। कृष्ण भारतीय - संस्कृति में भगवान् का रूप है और इसका अर्थ है-"भगवान् को सरलता प्रिय है। ऋजुता, निग्रन्थता (गाँठ रहितता) से भगवान् भी प्यार करते हैं।" __ मैं देखता हूँ, 'अन्न' जिसे प्राण कहा गया है-"अन्नं वै प्राणा:", और जो सृष्टि की समस्त ऊर्जा का केन्द्र है, उसे पैदा करने के धर्म की बाधार भूमि : ऋजुता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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