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हैं। अगर हमने धर्म के नाम पर चलने वाली इन गलत परम्पराओं को सहारा दिया, तो हम क्षीण हो जाएंगे, गल जाएंगे। हम आगे बढ़ती हुई दुनिया के सामने टिक नहीं सकेंगे। आज आवश्यकता है एक नेतृत्व की । मात्र नेतृत्व की ही नहीं, देश - कालानुसारी प्रबुद्ध नेतृत्व की । ऐसा प्रबुद्ध नेतृत्व, जो परम्पराएँ आज के युग में उचित एवं उपयोगी हों उनको दृढ़ता से सुरक्षित रख सके, और जो अनुचित एवं अनुपयोगी हो, उन्हें दृढ़ता के साथ काट कर दूर फेंक सके । इतना ही नहीं, भविष्य के लिए उचित एवं उपयोगी परम्पराओं का सन्देश भी दे सके। जनवरी १९७३
ARJURJARJARAN
मनुष्य के पास मस्तिष्क है, विचार है, बुद्धि है और है अपना स्वतन्त्र चिन्तन । पीछे से चली आ रही हर परम्परा को वह आँख बन्द करके स्वीकारता ही चले, यह उसके स्वतन्त्र चिन्तन एवं बुद्धि का अपमान है । हमारे लिए यह आवश्यक नहीं, कि हम पुरानी पीढ़ी का चश्मा लगाएँ - ही - लगाएँ। हम अपनी दृष्टि से देखें-क्या सही है और क्या गलत है ? साथ ही यह भी ध्यान रखिए कि विना किसी नए सिद्धान्त - स्थापना की दृष्टि के कोरा अस्वीकार पलायन है । पलायनवादी के पास कुछ कर पाने या कुछ नया देने की क्षमता नहीं होती। इसलिए मानव अपनी बुद्धि एवं स्वतन्त्र चिन्तन का प्रयोग करे, नए सिद्धान्त की स्थापना की दृष्टि को ध्यान में रखकर । नए के व्यामोह में सब-कुछ नकारता ही न चला जाए।
चिन्तन के झरोखे से :
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