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________________ विपरीत काम करते हैं, और मारे जाते हैं। शक्ति का कितना ही प्रदर्शन क्यों न करो, आखिर एक दिन तो पोल खुल ही जाती है। __कुत्ते को शेर की खाल पहनाकर शेर बना भी दिया जाए, तो क्या वह वस्तुतः शेर बन जाता है ? कुत्ता आखिर कुत्ता ही है न ? मत्त गजेन्द्रो के मस्तकों को उत्पाटन करने वाले केशरीसिंह की तरह वह गर्जन कैसे करेगा ? कुत्ता भौंक सकता है, सिंहनाद तो नहीं कर सकता। "आबद्धकृत्रिमसटा जटिलां सभित्तिरारोपितोमृगपते: पदवीं यदि श्वा । मत्तेभकुभतटपाटन लम्पटस्य, नादमकरिष्यति कथं हरिणाधिपस्य ॥" कुछ मनुष्य भी उक्त स्थिति के ही होते हैं। ये बौने बड़ों का बाना पहनकर बड़े नहीं बन सकते। महान्, महान् ही होते हैं ? महान होने के लिए महत्ति योग्यता की अपेक्षा है। यदि वह योग्यता नहीं है, तो कृत्रिम महत्ता कब तक सुरक्षित रह सकती है ? अन्ततः उसकी पोल खुलकर ही रहती है। मैंने कितने ही ऐसे वज्र मूर्ख देखे हैं, जो शास्त्रज्ञान के नाम पर अहंकार तो बहुत बड़ा रखते थे, किन्तु वे जानते कुछ भी नहीं थे। उन लोगों को विद्वत् सभा में यों ही अंटसंट बोलते तथा परिहास पाते हए देखा है। इधर-उधर अनुवाद के आधार पर संस्कृत तथा प्राकृत के कुछ पन्ने उलट - पलट कर शताधिक अशुद्धियों से परिपूर्ण कुछ श्लोक याद कर लेते हैं और अपने पाण्डित्य का साधारण जनों में व्यर्थ के अहंकार के साथ प्रदर्शन करते रहते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए किसी कवि ने कभी लिखा था "सारस्वतं श्रुतिपथं न कदापि नीतं । काव्यं न कोमल पदावलि दक् समक्षम् ॥ अन्धेषु मूर्ख - बहुलेषु समाजकेषु । पाण्डित्यमेवममलं प्रकटी - करोति ॥" कितना अच्छा होता इनको अपने बल, बुद्धि और व्यक्तित्व का भान होता, पर होता कैसे ? पुण्यशाली आत्माओं को हो पहले अपने को परखो तो सही : १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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