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________________ अपनी अन्तर् - क्षमता का भान होता है। भाग्यहीनों को यह सौभाग्य कैसे मिल सकता है ? प्राचीन इतिहास के उदाहरणों के सघन-वन में जब हम पहँचते हैं, तो हमें ऐसे व्यक्ति मिलते हैं कि जो अहंकार से उन्मत्त हो गए थे। फलस्वरूप हवा भरे गुब्बारे के समान आकाश में उड़ने लगे थे। ज्यों ही किसी चोट के कारण सच्छिद्र हुए और हवा निकली, कि भूमि पर बुरी तरह गिर पड़े।। रावण को अपनी शक्ति का बहत बड़ा अभिमान था और इसी शक्ति की भ्रान्ति के कारण, वह मदान्ध होकर दण्डकारण्य से एकान्त में अकेली बैठी सीता को चरा लाया था। रावण ने यह नहीं सोचा, कि श्री राम और लक्ष्मण मेरे से कितने अधिक बलवान हैं । भले ही वर्तमान में अकेले हैं, वनचारी भी हैं, किन्तु उनकी शक्ति तो बहुत बड़ी है। वे इतिहास को बदलने में समर्थ हैं। और, अन्ततः ऐसा हुआ भी। वह अपने मिथ्या अहंकार में विराट् शक्तिशाली राक्षस कुल का सर्वनाश कर बैठा-अपने व्यक्तित्व को ठीक तरह से न समझने के कारण । दुर्योधन कुरुवंश का राजपुरुष है। इसने इधर - उधर से अपने छल - छद एवं खुशामद से काफी बड़ी शक्ति का संचय कर लिया था। काफी बड़ी संख्या हो गई थी उसके पास, वीर - पुरुषों की। और, इस पर उसे इतना गर्व हो गया था कि वह तत्कालीन महाति महान् पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण को भी तुच्छ समझने लगा। भीम और अर्जुन जैसे महाबली पाण्डवों को भी तिनके के समान नगण्य समझता था। अज्ञान - पूर्ण मदान्धता के कारण उसने न श्री कृष्ण की महत्ता को समझा और न पाण्डवों के महाबली व्यक्तित्व को। परिणाम क्या हुआ ? अपने विराट कुल का विनाश कर बैठा और युद्ध के अन्त में खुद भी काल की ठोकरें खा कर यातना - लोक का यात्री हो गया। यदि वह पहले से ही अपने दुर्बल व्यक्तितत्व को समझ लेता, कि मैं क्या हैं ? अपनी शक्ति को तोल कर विवेक पूर्वक कार्य करता, तो यह सब - कुछ न हुआ होता। महाभारत के युद्ध की यह सर्वनाशी घटना पवित्र भारतीय इतिहास को कदापि कलंकित नहीं करती। १२२ बिन्तन के झरोखे से : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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