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________________ पहले अपने को परखो तो सही भूमण्डल के सभी प्राणीयों में मनुष्य एक सर्वोत्तम प्राणी है, उसकी महिमा एवं गरिमा के गीत प्रायः सभी ऋषि मुनियों ने अपनी ज्ञान - गम्भीर वाणी में गाए हैं । किन्तु, कुछ मनुष्य ऐसे भी हैं, जो अपनी जातीय गरिमा के अनुकूल नहीं हैं । उनके जीवन में मानव जाति की श्रेष्ठता के गुण नहीं होते, फिर भी वे अपनी श्रेष्ठता का बहुत बड़ा अहंकार रखते हैं । इधर उधर अपनी महत्ता के बेशुरे - गीत गाते रहते हैं । जब देखो, तब अपनी श्रेष्ठता की डींग हांकते रहते हैं, पर अपनी तुच्छता का जरा भी भान नहीं रखते। उनकी स्थिति 'पंचतन्त्र' के उस श्रृंगाल शिशु अर्थात् शियाल के बच्चे जैसी है, जिसे अबोध शिशु समझकर सहज मातृहृदय की कोमल - भावना के फलस्वरूप दशेरनी ने पाल लिया था । वह अपने जन्मजात दोनों बच्चों के समान ही उसे भी अपना तृतीय पुत्र माने हुए थी । किन्तु, शियाल तो शियाल ही था । उसमें सिंह के गुण कहाँ से आ सकते थे ? फिर भी अपने बल की डींग मारने में वह कुछ कम नहीं था । इस प्रकार से वह अपने आपको सिंह ही समझे हुए था । अज्ञानता के कारण तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी अपने को महान् -से-समझने लगता है । Jain Education International - पञ्चतन्त्र की कथा इस प्रकार है- एक सघन वन प्रदेश में सिंह - दम्पती रहते थे । शेरनी के अपने दो छोटे बच्चे भी थे । प्रातः काल सिंह शिकार की तलाश में अपने स्थान से चला । दिन भर इधर-उधर घूमता रहा, किन्तु उसे कोई प्राणो नहीं मिला । शशक जैसा छोटा प्राणी भी नहीं मिल पाया । सूर्य अस्त हो रहा था, संध्या निकट आ रही थी । अतः शेर थका- मांदा स्व स्थान की ओर लौट रहा था । मार्ग में उसे शियाल का एक बच्चा मिल चिन्तन के झरोखे से : ११८ For Private & Personal Use Only - - www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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