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इतिहास में उपर्युक्त महापुरुषों से कुछ अन्य भी इसी यात्रा पथ के कुछ यात्री हए हैं। शुरू में चले हैं, काफी ढोल - धमाके के साथ, किन्तु ज्यों ही, कुछ दूर आगे बढ़े और विघ्न - बाधाओं से सामाना पड़ा, तो उनके पैर डगमगा गए। उनकी संकल्प शक्ति सुदृढ़ नहीं थी। अतः वे थोड़ी-सी ठोकर लगते ही वहीं लुढक गए और मिट्टी के ढेर बनकर रह गए । वे कुछ बन सकते थे, अपने जीवन के दिव्य लक्ष्य को पा सकते थे। परन्तु, वज्र-संकल्प के अभाव में कुछ कर नहीं पाए। ज्योतिर्मय क्या बनाना था, एक साधारण से जुगनू भी तो ठीक तरह से नहीं बन पाए ।
इतिहास में दोनों ही रूपों के हजारों क्या, लाखों - लाख उदाहरण हैं जो स्पष्ट करते हैं कि मनुष्य वही महान् है, जो वज्रसंकल्प का धनी है। जिनकी संकल्प शक्ति अजेय थी, वे निरंतर ऊर्ध्व चेतना के रूप में अनन्त ऊर्ध्वस्थिति की ओर बढ़ते गए और अनन्तः उसे प्राप्त करके ही रहे, जिसके लिए भक्त स्तोत्रकारों ने हर्ष से आनन्द से, उल्लास से, कभी गाया था"त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस
मादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्युम,
नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र | पन्थाः ।"
ARARIALA
नव वसन्त जीवन कष्ट - कंटकित है तो, मानद ! क्यों रोया करता है । नव वसंत का सुमन सुगंधित, काँटों में ही हंस - खिलता है ।
संकल्पो हि गरीयान् ।
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