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________________ आया है, आज का मानव और यह सब प्रायः हो रहा है धर्म के पवित्र नाम पर। नाम पर इसलिए कि यह धर्म नहीं है, धर्म के नाम पर सम्प्रदायवाद या सम्प्रदाय-दाह का नग्न ताण्डव है । काफी समय से राजस्थान के सिरोही आदि प्रदेशों में अनूप मंडल के नाम से एक ऐसा ही घृणित पंथवाद चल रहा है | खेद है, अकारण ही, यत्र तत्र श्वेताम्बर मुनिवरों पर आक्रमण होते आ रहे हैं । जैन मन्दिर जलाए जा रहे हैं, श्रावक जन लूटे जा रहे हैं, साधुओं को बेरहमी से मारा-पीटा जा रहा है । पर, अभी तक प्रतिकार के रूप में न समाज से कुछ हो पा रहा है, न सरकार से, जैसा कि मुझे मालूम हुआ है । • सन्मतिसागरजी जैसे अनेक नग्न दिगम्बर मुनियों पर भी राजस्थान में ऐसे कुछ दुर्व्यवहार हुए हैं । कुछ समय पूर्व एक मिथ्या अफवाह फैलाकर तेरापन्थ संघ के महान आचार्य श्री तुलसीजी एवं उनके साधु और साध्वियों तक के प्रति दुर्व्यवहार किया जा चुका है, वह सर्व विदित है । उन्हें बाध्य होकर रायपुर से चातुर्मास में ही अन्यत्र विहार कर देना पड़ा । इस दुश्चक्र में किन सम्प्रदायवादी महन्तों एवं मठाधीशों का हाथ था, क्या यह भी अब बताने जैसा है? अभी अहमदाबाद में स्थानकवासी परंपरा की साध्वीरत्न श्री हीराबाई महासतीजी पर आक्रमण हुआ है । इसकी सुर्सी धुंधली हुई भी नहीं थी कि बम्बई में आचार्य श्री विजयरामसूरीश्वर डेहला वालों पर आक्रमण कर दिया । और अभी-अभी हिसार में नवतेरापंथ में प्रव्रजित होनेवाली भावदीक्षिता किरण कुमारी का गुण्डों द्वारा अपहरण का दुष्प्रयास किया गया, जिससे सर्व-साधारण जैन, अजैन जनता में उत्तेजना व्याप्त हो गई । साध्वीजी पर भी चप्पलें मारी गईं । साध्वियों के अपहरण की और उनके प्रति लज्जाजनक व्यवहार की, अन्य भी अनेक घटनाएँ हैं, जो समाचार पत्रों के पृष्ठों पर आ चुकी हैं । एक नया दौर और चला है धमकी भरे पत्रों का | ज्ञानागच्छ के सुप्रसिद्ध साधु और साध्वी का अपहरण कर सुदूर प्रदेशों में कहीं ले जाने के पत्र मिले हैं । आचार्यरत्न श्री नानेशजी के एक विद्वान सन्त की नाक काट देने का पत्र भी 'श्रमणोपासक पत्र के द्वारा प्रकाश में आया है । (३४३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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