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________________ मानवता का भीषण कलंक : जातिवाद जीवन है, समाज है और राष्ट्र है । इन तीनों का एक-दूसरे के साथ बहुत गहरा सम्बन्ध है । वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के विविध रूपों में मानव अपनी भावनाएँ क्रिया के रूप में अवतरित करता रहता है । वे भावनाएँ हिंसा और अहिंसा के रूप में असंख्य भेदों के साथ प्रकट होती हैं, जिस किसी भी क्षेत्र में या जिस किसी भी ढंग से, जो भी ज्ञात या अज्ञात, सूक्ष्म या स्थूल, बाय या आन्तरिक हिंसा होती है, वहाँ मानव का सद्विवेक चाहता है कि हिंसा का स्थान अहिंसा ग्रहण कर ले | अहिंसा के द्वारा ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का त्राण सम्भव है । इसलिए मानव हर स्थान पर हर रूप में, हर क्षेत्र में हिंसा को पददलित करना चाहता है और अहिंसा को प्रोत्साहित करना चाहता है। 1 जो हिंसा, क्रोध, मान, माया, लोभ एवं वासना के रूप में मानव मन के अन्दर-ही-अन्दर आग की तरह सुलगती रहती है, वह आन्तरिक हिंसा है । इस हिंसा के माध्यम से हम किसी दूसरे की ही हत्या नहीं करते, बल्कि अपने ही अभद्र संकल्प से अपनी ही हत्या करते रहते हैं । आत्म-हत्या का अर्थ बन्दूक या पिस्तौल से जहर खा कर या कुएँ में गिर कर मर जाना इतना ही नहीं है । यह तो शरीर की ही हत्या हुई । किन्तु, मनुष्य जब अपने सद्गुणों की, सद् विचारों की और सद्वृत्तियों की हत्या करता है, तो वह अधिक भयंकर है, वह ही आत्म-हत्या होती है । आत्म-हत्या कायरता है । मानव जीवन में जहाँ तक कायरता आएगी, वहाँ तक वह पतित ही होगा और सवृत्तियों से भ्रष्ट होगा । कायरता और भय ही मानव जीवन के पतन का कारण है और हिंसा में केवल कायरता ही होती है, वीरता नहीं । जो आदमी डरता है, भय खाता है और अपने को बचाने के लिए या अपनी कुप्रवृत्तियों को बढ़ावा देने के लिए दूसरों पर क्रोध करता है, दूसरों को असवचन कहता है, या दूसरों को मार डालता है, वह निहायत डरपोक है, कायर है । जिसके हृदय में भय नहीं है जिसको अपने (३३७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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