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बाल-जीवन पर घोर अत्याचार
आजकल व्यक्तिगत वार्ताओं एवं समाचार - पत्रों में अबोध बालकों पर होने वाले अत्याचारों की काफी भयावह रोमांचक चर्चा है । जिस भारत की आर्य संस्कृति अहिंसा, करुणा एवं मैत्री पर आधारित है । जहाँ राम, कृष्ण जैसे विराट विश्वात्मा प्रेम-योगी तथा महावीर, बुद्ध जैसे सर्व भूतानुकम्पी करुणा मूर्ति महापुरुष हुए हैं, वहाँ आज मनुपुत्रों पर, विशेषत: असहाय कोमल तन - मन के बच्चों पर, जो अमानवीय अत्याचार हो रहे हैं, वे मानवता पर अभद्र कलंक हैं ।
मनुष्य जब क्षुद्र स्वार्थों के व्यामोह में अन्धा हो जाता है, जब उसकी संवेदनशील व्यापक समग्र चेतना सिमटकर वैयक्तिक स्वार्थ बिन्दु पर आकर अवरुद्ध हो जाती है, तब इस धरती पर अत्याचार, दुराचार, अनाचार जैसा, जो भी असभ्याचरण हो जाए, कम है । खुदगर्जी के कुचक्र में इन्सान के अन्दर का देवता मूर्छित हो जाता है और उसके वक्ष पर हिंसा का, हत्या का, उत्पीड़न का राक्षस नंगा नाचने लगता है । खेद है वर्तमान में मानव की जीवन-पद्धति पर इसी राक्षस के उच्छंखल राज्य का विस्तार हो रहा है ।
आज बँधुआ बाल-श्रमिकों की स्थिति दयनीय ही नहीं, अतीव भयंकर है । यह पुरातन दास - प्रथा से भी अधिक घिनौनी प्रथा चल पड़ी है। स्वाधीन भारत में जिस दासत्व के अत्याचार की कल्पना तक भी नहीं की जा सकती, वह सब हो रहा है, खुलेआम आज अबोध बाल - श्रमिकों पर ।
गरीब आदिवासी, हरिजन एवं अन्य पिछड़ी जाति के बच्चे इस अत्याचार के अत्यधिक शिकार हैं | गरीबी क्या नहीं कर देती? गरीबी से भूखे मरते माँ-बाप औद्योगिक क्षेत्र के कुछ लोगों के बहकावे में आ जाते हैं, फलत: नाम मात्र के नगण्य वेतन पर ही कारखाने की आग में अपने प्रिय नौनिहालों को
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