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________________ हिंसा के ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप हैं । इन सबका समाधान अहिंसा में है । पंजाब से सम्बन्धित हिंसा की तो मैंने वर्तमान की दृष्टि से मुख्य चर्चा की है । पर, केवल पंजाब का ही प्रश्न नहीं है । जहाँ भी इस प्रकार के अमानवीय अपकर्म हो रहे हैं, सर्वत्र उन सबके प्रतिकार का अहिंसा ही एक अमोघ उपाय है। जहाँ चक्रवर्ती शासकों तक के शस्त्र जनता में न्याय, व्यवस्था, शान्ति की स्थापना में असफल होते हैं, वहाँ धर्म परंपराओं के महान् गुरुजनों के द्वारा प्रतिपादित अहिंसा के मंत्रास्त्र सफल होते हैं । अतः धर्म शासकों पर दायित्व है, वे प्रत्यक्ष में अहिंसा के अमोघ मंत्रास्त्र को लेकर मैदान में उतरें और हिंसा का सीधा सक्रिय प्रतिकार करें । शुद्ध निष्ठा से यदि प्रयोग के रूप में अहिंसा को सही एवं सक्रिय रूप दिया जाए, तो अवश्य ही मानव के अन्तर् की सुप्त मानवता जाग सकती है, दुराचार सदाचार के रूप में परिवर्तित हो सकता है । घोर नरक बनती जा रही धरा पर मंगल - कल्याण का सुखद स्वर्ग उतर सकता है । 2 हिंसा वृत्ति और असंभव कुछ नहीं है । अपेक्षा है, भयमुक्त मन, वाणी और कर्म से अभय के दाता भगवान महावीर के अभयदाया भवाहि' के अभय सूत्र को गाँव-गाँव में, नगर-नगर में, जन-जन में अनुगुंजित करने की । तदनुसार हिंसा प्रवृत्ति के कारण सब ओर भय फैला हुआ है कोई भी क्षेत्र भय से मुक्त नहीं है । इस भय के वातावरण को अहिंसा के द्वारा प्रतिष्ठापित अभय के द्वारा ही बदला जा सकता है । परन्तु यह गिरे - पड़े, भयाक्रान्त मन वाले साधारण लोगों से नहीं होने वाला है । यह हुआ है, और होगा, हजारों वर्षों से अहिंसा का मंत्र जपते आ रहे, अहिंसामूर्ति धर्म-गुरुओं के द्वारा | समय आ गया है, अहिंसा के सही एवं सक्रिय प्रयोग का । अहिंसा के पक्षधरों की परीक्षा का काल है यह । मैं आशा करता हूँ, हमारे अहिंसावादी सभी साथी इस परीक्षा में खरे उतरेंगे, अहिंसा की सफलता को डंके की चोट प्रमाणित करेंगे । जून १९८४ Jain Education International (३०९) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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