SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचार में इसका उत्तर है, मानवजाति का नेतृत्वहीन हो जाना । आज परिवार, समाज, राष्ट्र यहाँ तक कि धार्मिक परंपराएँ भी नेतृत्वहीन हैं । वैसे तो नेताओं की भरमार है, एक नेता खोजो, तो हजार नेता मिल जाएँगे । कदम-कदम पर नेता बिखरे पड़े हैं । परन्तु, प्रश्न है सही नेता और सही नेतृत्व का । सही नेता और सही नेतृत्व के अभाव के फल स्वरूप ही आज का युवा वर्ग दिशाहीन है। युवावस्था ही है, जो समाज राष्ट्र का निर्माण कर सकती है, यदि उसे वैचारिक दृष्टि से सही नेतृत्व मिले तो । सही नेतृत्व मिला था अर्जुन को, जिसे विराट पुरुष श्रीकृष्ण ने समयोचित कर्तव्य का सही बोध कराया था । सही नेतृत्व मिला था, अब से अढाई वर्ष पूर्व श्रमण भगवान महावीर एवं तथागत बुद्ध का, जिन्होंने हिंसा प्रधान यज्ञ एवं क्रूर जातिवाद आदि के भ्रम में भूली - भटकी तत्कालीन मानवजाति को अहिंसा, करुणा, मैत्री, समानता तथा बन्धुता आदि का विश्वमंगल अमृत सन्देश दिया था । तत्पश्चात् भी जैन, बौद्ध, वैष्णव आदि धर्म-परंपराओं के अनेक महापुरुष ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपने-अपने युग में विनष्ट होती मानव जाति की रक्षा की है । सही नेतृत्व हो तो सब कुछ हो सकता है, असंभव जैसा कुछ नहीं है । परन्तु, खेद के साथ लिखना पड़ता है कि आज ऐसा सही नेतृत्व कहाँ है ? आज समाज के नेता कहे जाने वाले पीठासीन लोग अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति में बुरी तरह लिप्त हैं । उन्हें कैसे भी हो, न्याय या अन्याय से संपत्ति एवं सत्ता मिलनी चाहिए और उसके सहारे पद-प्रतिष्ठा के सिंहासन मिलने ही चाहिए । उन्हें नाम से मतलब है, काम से नहीं । समाज जाए भाड़ में, उनके हाथ की पाँचों ही अंगुलियाँ घी में डूबी हुई रहनी चाहिए । इनमें से अधिकतर लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी किसी खास परम्परा के धर्म-गुरुओं के सहारे से भी पद और प्रतिष्ठा की चमकती सीढियों पर या तो चढ गए हैं, या भला-बुरा जैसा भी करना होता है, चढ़ने का जोड़-तोड़ लगा रहे हैं । अब रहे राष्ट्र नेता । उनकी भी जो स्थिति है, सब के सामने है । वे भी सिंहासनों के मोह में राजनीति के नाम पर कूट- नीति के कुचक्रों में उलझे हुए हैं । पक्ष के हों या विपक्ष के, अधिकतर महानुभाव ऐसे ही हैं, जो निन्दित जातीयता, प्रान्तीयता एवं सांप्रदायिकता के आधार पर और शेष में पैसे के बल पर जनतन्त्र के पवित्र नाम पर मतपत्रों का खेल खेल रहे हैं । कभी-कभी तो इस जनतन्त्रीय चुनाव के नाम पर समाज एवं राष्ट्र में जातीय एवं साम्प्रदायिक (३०६) Y Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy