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कहीं भी सुरक्षित नहीं है आफिस हो, बाजार हो, घर हो या धर्मस्थान हो, कहीं भी, कभी भी, कोई भी गोलियों का अचानक शिकार हो सकता है । बस में यात्रा कर रहे निर्दोष यात्री गोलियों से भून दिए जाते हैं, छुरों से क्षत-विक्षत कर दिये जाते हैं, धर्म - स्थानों में, पूजागृहों में अपने - अपने आराध्य देव की जो मूलत: स्वरूप की दृष्टि से सबका एक ही है पूजा, प्रार्थना एवं भक्ति में लीन स्त्री-पुरुषों पर अचानक बम एवं बन्दूक की गोलियों से हमला होता है और एक मनहूस हृदयप्रकंपक हाहाकार मच जाता है, आँसुओं की धाराएँ बह जाती हैं । अनेक व्यक्ति तत्काल मृत्यु के मुख में पहुँच जाते हैं और अनेक बुरी तरह घायल एवं मरणासन्न स्थिति में चीखने-चिल्लाने लगते हैं । कभी-कभी तो धार्मिक शोभा यात्राओं एवं समारोहों पर भी यह कहर टूट पड़ता है । आतंक के यह दुर्दृश्य कभी सामूहिक आक्रमणों के रूप में देखे जाते हैं, कभी व्यक्तिगत, मारो और भाग जाओ के रूप में घटित होते हैं । आज सामूहिक आक्रमणों की अपेक्षा व्यक्तिगत आतंकवाद अधिक भयंकर हो गया है । इसके प्रतिकार का कोई कारगर उपाय ही अभी तक शासन के ध्यान में नहीं आ रहा है । अभी-अभी चण्डीगढ़ में डॉ. तिवारी और दिल्ली में हरवंशसिंह मनचन्दा आदि इसी व्यक्तिगत आतंकवाद के शिकार हुए हैं। एक-दो तिवारी और मनचन्दा क्या, सैकड़ों निर्दोष तिवारी और मनचन्दा, इस राक्षसी क्रूरता की बलिवेदी पर निर्ममता के साथ चढ़ा दिए गए हैं । अनेक बुद्धिजीवी एवं समाजसेवी तो इसी रूप में मारे गए हैं । क्या दोष था इनका ? यही दोष कि वे एक भिन्न धर्म-परंपरा के व्यक्ति थे, या भिन्न विचार धारा के। आज कल 'हिटलिस्ट' की काफी चर्चा है, लोगों की जबान पर । यह 'हिटलस्ट' क्या बला है ? सचमुच ही बला है । अपने विपक्ष के या भिन्न विचार के प्रमुख लोगों की हत्या करने की एक काली सूची । और यह सूचि तैयार होती है तथाकथित देवता स्वरूप संतों के दरबार में, सन्तों के परामर्श पर कितना भीषण पतन है, भारतीय आदर्शों के पवित्र नामों का । सन्तों का तो कभी आदर्श था, अपने पर प्रहार करने वाले दुष्टों को भी प्रसन्न मुद्रा में अंतरहृदय से क्षमा कर देना । काँटों के बदले फूल अर्पण करना, और आज क्या है, इन हिटलिस्टों के पीछे ? जातीयता का, प्रान्तीयता का एवं अन्ध साम्प्रदायिकता का गुर्राता बेनकाब पागल अहंकार ही अधिकांशतः इस खुराफात की जड़ है ।
हाँ, तो मानवताशून्य अत्याचार के इस भयानक जंगल में वही पहले का प्रश्न फिर उभर रहा है कि प्रस्तुत दु:स्थिति का मुख्य हेतु क्या है ? मेरे
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