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घृणा की ऐसी आग लगा देते हैं, जो चिरकाल तक जलती रहती है, और उसमें महान् राष्ट्र के महान् आदर्श भस्मीभूत होते रहते हैं ।
जाने दीजिए इन समाज और राष्ट्र के नेताओं को । बेचारे संसारी प्राणी हैं । अपने क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर उठ नहीं सकते हैं, अत: करें भी तो क्या करें ? मुझे सबसे अधिक दर्दभरा विषाद तो धर्मगुरुओं के नेतृत्व पर है । प्रत्येक धर्म-परंपरा में अनेक सुप्रसिद्ध नामी आचार्य हैं, आचार्य सम्राट हैं, अन्य भी अनेक पदवीधर हैं । ये धर्म गुरु ही हैं, जिन्होंने समय-समय पर समाज और राष्ट्र की मानव-प्रजा को कर्तव्य का सही बोध दिया है, जीवन जीने की सही दिशा दी है । परन्तु, आज क्या हो रहा है ? आज तो प्रायः धर्म-शास्ता सब
ओर से आँख मूंदकर मात्र अतीत के पुराने गान गाने में ही लगे हैं । न इन्हें समाज का वर्तमान दिखाई देता है और न भविष्य ! आज क्या है और कल क्या होनेवाला है, कुछ पता है इन्हें ? बस, ये केवल अतीतदर्शी हैं | अतीत के भी केवल सड़े-गले मृत शरीर को ही देखते हैं, उसकी आत्मा को नहीं । आज के ये धर्मगुरु जिधर भी जाते हैं, अपनी मान्य सांप्रदायिकता का विष ही फैलाते हैं, जिसके दुष्परिणाम समाज और राष्ट्र को बुरी तरह भोगने पड़ रहे हैं। दो चार उग्र तथा कठोर कहे जाने वाले रूद नियमों के ऊपर समाज को भुलावे में डालते हैं और अपने स्वार्थ-पूर्ति का दुर्गम-मार्ग प्रशस्त करते हैं। इनके पास शास्त्रों के शब्द हैं, मर्म नहीं । बहुतों के पास तो अच्छी तरह शब्द भी नहीं हैं। इनमें से अधिकांश धन की न सही, धनवालों की गुलामी अवश्य करते हैं । ये महानुभाव विचित्र हैं | कभी प्रत्यक्ष, तो कभी परोक्ष, एक-दूसरे पक्ष या व्यक्ति की निन्दा
और आलोचनाएँ करके समाज के अमृतमय मधुर वातावरण को विषाक्त एवं कटु बनाने में ही संलग्न हैं । परस्पर के सद्भाव तथा सहयोग के माहौल को इतना दूषित कर दिया है कि प्रबुद्ध वर्ग तो अधिकांशतः धर्म से विमुख ही होता जा रहा है ।
मैं देखता हूँ, मैं क्या, सभी देख रहे हैं, आज पंजाब की क्या स्थिति है ? हिंसा, घृणा, वैर-विद्वेष की आग में जल रहा है भारत का यह महान अंग | और ये धर्मगुरु, ये अहिंसा, प्रेम और विश्व मैत्री के दावेदार अन्ध
और अपंग की तरह एक कोने में चुपचाप पड़े हैं । स्वर्ग, नरक और मोक्ष की बहुत सूक्ष्म झीनीझीनी बातें हो रही हैं, परन्तु जिसके लिए ये बातें हो रही हैं, उस मानव की ओर कोई देख नहीं रहा है । इन्हें जितनी चिन्ता एकेन्द्रिय स्थावर
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