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________________ सत्साहसी पुरुष नहीं, पुरुषसिंह है मानव के उदात्त जीवन की सबसे बड़ी शक्ति, उसका अपना साहस है। संकट के सर्वहारी विकट क्षणों में भी, यदि मानव को कोई धैर्य एवं बल दे सकता है, तो वह उसके वज्र हृदय का अदम्य साहस ही है । साहस संकट के गरजते काले बादलों में चमकने वाली पथ-प्रदर्शक बिजली है । __संकट के समय में सहारे के लिए कितने ही हाथ फैलाइए, कोई सहारा देने वाला नहीं है । सहारा देने वाला है, आपका एक मात्र सहज मित्र साहस । कितनी ही भयंकर-से-भयंकर विपत्ति क्यों न हो, मृत्यु के क्षण भी क्यों न निकट आ गए हों, आप साहस न छोड़िए । संकट के प्रतिकार में साहस के साथ लगे रहिए । और कोई नहीं, अपनी मदद आप ही करते रहेंगे, तो संभव है, संभव ही है, कहीं न कहीं से आपको कोई-न-कोई सहारा मिल ही जाएगा और आप संकट के गर्त से उबर जाएँगे। एक पुराकाल के अनुभवी मनीषी की वाणी है कि भीषण संकट के काल में भी धैर्य एवं साहस नहीं छोड़ना चाहिए । धैर्य रहा तो कोई न कोई संकट से बचने की राह मिल ही जाएगी । संभावनाओं की ज्योति मन में जलती रहनी चाहिए । समुद्र में जलयान-जहाज के ध्वस्त हो जाने पर भी सांयात्रिक अर्थात् नाविक साहस के साथ तैरने का प्रयत्न करता ही है “यथा समुद्रेऽपि च पोतभंगे, सांयात्रिको वाच्छति तर्तुमेव। " बौद्ध जातक साहित्य में तत्कालीन विदेह प्रदेश के एक राजकुमार की ऐसी कथा है । राजकुमार महाजनक विपत्ति में उलझा हुआ था, राज्य-भ्रष्ट होकर असहाय दीन, दरिद्र हो गया था । अत: इधर-उधर से कुछ धन का जुगाड़ कर व्यापार के द्वारा विशेष धनार्जन के लिए वह जहाज से स्वर्णद्वीप, (२९३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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