________________ याद रखिए आँख बंद करके चलते रहने में कोई गौरव नहीं है। विचारों की, चिन्तन की, प्रज्ञा की आँख बंद करके चलने वाले अन्धे इधर-उधर परस्पर टकराते, भटकते फिरेंगे। महान वे ही हैं, जो लकीर से हट कर अपनी प्रज्ञा से चलते जाते हैं। और, रही बात राह की? राह तो स्वतः बनती जाती है। इसलिए महापुरुषों का एक ही स्वर सदा गूंजता रहा है तू ऊपर चढने के लिए है, एक शिखर से दूसरे, तीसरे शिखरों को पार करने के लिए है। -उपाध्याय अमर मुनि Jan Education International FOCPrivate personal usery www.jamelibrary.org