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________________ जब महान पूज्यतम शास्त्र कहे जाने वाले वेदों तक के संबंध में श्री कृष्ण की इस प्रकार निषेधोक्ति है, तब अन्य अमानवीय एवं यातनाओं से पूर्ण क्रिया-काण्डों की भ्रान्त कथाओं से युक्त तथा कथित साहित्य को धर्म-क्षेत्र में से अपदस्थ करने की बात तो स्वयं सिद्ध हो जाती है । यह मैं केवल पक्षपातवश पुराण आदि के साहित्य के सम्बन्ध में ही नहीं कहता, अपितु शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध, सिख, मुसलमान, ईसाई आदि के प्रचलित धर्म-ग्रन्थों के सम्बन्ध में भी कहता हूँ । जहाँ जो भी वर्णन एवं विधान असामाजिक एवं अमानवीय है, उसे साहस के साथ अमान्य करना ही चाहिए । यह भ्रान्त धारणा है कि इस प्रकार अग्नि-दाह के द्वारा प्राणान्त करने वाली नारी अगले जन्म में अपने मृतपति के पास स्वर्ग में पहुँच जाएगी | प्रत्येक प्राणी के कर्म भिन्न भिन्न होते हैं और उसके अनुरूप ही अगले जन्म की गति होती है । अत: श्रमण संस्कृति के महान् देव पुरूष श्रमण भगवान महावीर इस प्रकार के मरण को बाल-मरण अर्थात् अज्ञान मरण कहते हैं । बालमरण पुण्य का हेतु नहीं, पाप का ही हेतु होता है । इस सम्बन्ध में उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवें अध्ययन का उपसंहार द्रष्टव्य है " सत्थग्गहणं विसभक्खणं च, जलणं च जलप्पवेसो य । अणायार-भण्डसेवा, जम्मण-मरणाणि बन्धन्ति ।।" उत्तराध्ययन, ३६, २६७ इतिहास साक्षी है कि भगवान महावीर की उपासिकाओं में से किसी ने भी अपने मृतपति के साथ अग्नि प्रवेश नहीं किया है । मगध नरेश श्रेणिक-बिम्बसार की रानियाँ, वत्स नरेश उदयन की माता मृगावती आदि इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं । वे वैधव्य स्थिति में अनेक वर्षों तक गृह जीवन में रही हैं और पश्चात् प्रभुचरणों में दीक्षित हो गई हैं । प्रस्तुत चर्चा इसलिए प्रचारित हो गई है कि राजस्थान में सीकर के पास एक गाँव दिवराला की क्षत्रिय वधू रूपकुँवर अपने नव विवाहित मृत पति के साथ अग्नि दाह के द्वारा सती हो गई है या कर दी गई है । यह १८-१९ वर्ष की मासूम लड़की है । उसे धर्म-शास्त्रों का क्या ज्ञान है ? वह तो स्पष्ट ही भावावेश मूलक रागान्धता की अथवा आस-पास के परम्परा की मूढ़ता से ग्रस्त (४७८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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