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लोगों द्वारा की जाने वाली सतीत्व महिमा से सम्बन्धित उत्तेजित चर्चाओं की व्यर्थ ही शिकार हो गई । वह देवी बन गई है इसका क्या प्रमाण है ? यदि वह देवी बनी है, तो उसे पता होना चाहिए कि उसकी मृत्यु को लेकर भारत की जनता में कितना अधिक परस्पर विरुद्ध भीषण वैचारिक द्वन्द्व हो रहा है? परिवार के प्रिय जन कारागार में किस प्रकार पीड़ा पा रहे हैं ? वह देवी है, तो क्यों मौन है? उसे साक्षात् देवी के रूप में अघर आकाश में खड़े होकर यत्र-तत्र दैवी घोषणा कर देनी चाहिए कि मैं रूपकुँवर अब देवी हूँ, अपने पति के साथ हूँ सती प्रथा अनुचित नहीं अपितु उचित है । सती प्रथा के समर्थक सब लोग निर्दोष हैं आदि आदि । यदि ऐसा हो जाए तो सब द्वन्द्व तत्काल समाप्त हो सकते हैं । किन्तु, ऐसा कुछ न कभी हुआ है और न होने वाला ही है । समाज को तथाकथित शास्त्र-बद्धता एवं परम्परा से मुक्त होकर तटस्थ भाव से प्रस्तुत में अपने बौद्धिक चिन्तन का ही अवलम्बन करना चाहिए ।
मेरा समग्र समाज से ही आग्रह है कि वह अपनी मानवीय चेतना के चिन्तन को यों ही कदाग्रहों के हवाले न करे | विशेषत: ब्राह्मण समाज से एवं क्षत्रिय समाज से निवेदन है कि वह अपने अतीत के गौरव को स्मृति में लाएँ । ब्राह्मण समाज बौद्धिक चेतना का पक्षधर रहा है । उसे नहीं भूलना चाहिए कि उसके पूर्वजों में से अनेक प्रबुद्ध महापुरुषों ने अनेक बार अज्ञानता की अँधेरी गलियों में से जनता को निकालकर प्रकाश का पथ दिखाया है । क्षत्रिय जाति भी भारत की महान जाति है । क्षत्रिय शब्द का मूल अर्थ ही है- जनता को पीड़ा से मुक्त करना
"क्षतात् किलत्रायत् इत्युदग्रह क्षत्रस्थ शब्द: भुवनेषु रूढः।"
उच्च ब्राह्मण जातीय महाकवि कालिदास की यह स्पष्टोक्ति है आप क्षत्रियों के लिए। आप क्षत्रिय ही थे, जिन्होंने मर्यादा पुरूषोत्तम राम तथा कर्मयोगी श्रीकृष्ण के रूप में नारी जाति के गौरव की रक्षा की है । आप ही वे क्षत्रिय हैं, जिन्होंने जिनेन्द्र महावीर एवं तथागत बुद्ध के रूप में नारी जाति को सभी प्रकार की अमानवीय दासता से मुक्त किया है और उसे उच्च-से-उच्चतर गरिमा के पद पर प्रतिष्ठित किया है । अत: आप सबका कर्तव्य है कि वर्तमान प्रश्न को भी उसी अपने पुरातन महापुरुषों के दर्शन का चिन्तन-मनन कर, वर्तमान में अपने परम्परागत दुराग्रहों से मुक्त होकर सदाग्रह का पक्ष लें। .
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