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अत: कृपया, इसे सही बुद्धि से सही अर्थ में समझने का आप में से कोई भी, कुछ भी चिन्तन करेगा, और तदनुकूल आचरण भी करेगा, तो मुझे और मेरे सभी सहृदय जनों को वह प्रसन्नता प्राप्त होगी, जिसकी अभिव्यक्ति स्थूल वाचा से परे होगी !
अगस्त १९८७
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