________________
पंजाब से बाहर विशाल भारत में सुख-चैन से निवास करते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि इस अलग राष्ट्र के दुःस्वप्न का अन्तत: क्या हाल होगा ? आज अर्थ से तथा येन-केन प्रकारेण गुप्त षड्यन्त्रों से तथाकथित हत्यारों को, जो सहायता पहुंचा रहे हैं, वे आज तो प्रसन्न हैं, खुशियाँ मना रहे हैं, परन्तु आने वाला इतिहास रुदन के सिवा कुछ नहीं होगा । यह वह सत्य है, जो न कभी झुठलाया जा सका है और न कभी झुठलाया जा सकेगा ।
मैं कोई राजनैतिक व्यक्ति नहीं हूँ, न मेरा किसी राजनैतिक दल से कोई सम्बन्ध है । मैं तो एक अहिंसा एवं सत्य के महान प्रवर्तकों एवं उपदेष्टाओं के पवित्र संदेशों का निष्ठावान संदेशवाहक धर्मदूत हूँ। और हूँ उन विश्वतो वंदनीय महापुरुषों का एक साधारण सा सेवकानुसेवक । अत: एकमात्र इसी उद्देश्य से मैंने अपने आत्म प्रिय भूले-भटके बन्धुओं से विचार चर्चा की है । मैं स्नेहशील हृदय के कण-कण से अभ्यर्थना करता हूँ कि ये मेरे अपने प्रिय युवकजन, धर्म गुरु और नेता अपनी सहज मानवीय करुणार्द्र सद्बुद्धि से काम लें, और इस अन्ध-गति से प्रचलित या प्रचालित हत्या - काण्डों से अपने को सर्वथा मुक्त करें । हम सबकी चिराति - चिरकाल से पूजा प्राप्त पवित्र भारत माता का अंगविच्छेद न करें । हम हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, जैन और बौद्ध आदि सम्प्रदायों के नाम से धार्मिक होने से पहले सत्य अर्थ में इन्सान तो बन लें । मनुष्यता मूल है, सभी धर्म एवं संस्कृतियों का । यदि यह नहीं है, तो फिर तो विना मूल अर्थात् जड़ के हवा में महान वटवृक्ष खड़ा करना है तथा विना नींव के आकाश में ईंट - पर- ईंट फेंक कर विशाल राजप्रासाद का निर्माण करना है । अस्तु, मैं शाहिर लुधियानवी के प्रस्तुत प्रसंग में एक दर्द भरे बोल को थोड़ा सा बदल कर बोल रहा हूँ ।
" न हिन्दू बनो तुम, न मुसलमान बनो तुम | इन्सान की औलाद हो, इन्सान बनो तुम ||"
प्रस्तुत बोल के हिन्दू और मुसलमान शब्दों में सिक्ख, ईसाई, फारसी, हिन्दू, जैन और बौद्ध सभी धर्म से सम्बन्धित नाम सन्निहित हैं । यह मेरे अन्तर्-हृदय की सिर्फ एक बात ही नहीं, किन्तु मर्मान्तक व्यथा है । और, केवल एक मेरी ही नहीं, सभी सहृदय जनों की यह एक सामूहिक अन्तर्-व्यथा है ।
(४६०)
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org