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________________ गया, जलूस निकाले गए और अन्तत: घास-पात की तरह काट-काटकर हत्याएँ कर दी गई। स्वार्थी और खुदगरज लोग इतने भुलक्कड़ होते हैं कि कुछ पूछो नहीं | मालूम होता है, वही दानवीय रक्तपिपासा अब भी शान्त नहीं हुई है । उसने ही बदल कर यह दूसरा भीषण रूप ले लिया है | लोग सत्य ही कहते हैं कि जो एक बार ऐसा खून मुँह लग जाता है, फिर वह प्रायः छूटता नहीं है । ___ भारतीय देश और संस्कृति को छिन्न-भिन्न कर, जो लोग अपना अलग देश और अलग संस्कृति की स्थापना करना चाहते हैं और अपना पृथक स्तान विशेष बनाना चाहते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि उनका वंश परम्परागत पुराना शत्रु सिरहाने बैठा है । उसे तुम्हारे 'स्तान' विशेष को समय पर निगलने में एक दिन भी नहीं लगेगा । यह जो-कुछ भी सुरक्षा है, वह अखण्ड भारत राष्ट्र की महाशक्ति की ओर से सुव्यवस्थित सुरक्षा है । अन्यथा, अन्यथा ही है । शत्रु को मित्र बनते और मित्र को शत्रु बनते, कितनी देर लगती है ? आज एक धर्म के रूप में सुसंगठित होने और उसके फलस्वरूप सुरक्षित होने और सुविकसित तथा समृद्ध होने का यत्र-तत्र दुःस्वप्न देखा जा रहा है, यह दुःस्वप्न अज्ञान एवं अबोध की गहराती काली निशा के अर्ध निशीथ काल का वह दुःस्वप्न है, जिसके प्रत्यक्ष परिणाम जनता के समक्ष आ चुके हैं और आ रहे हैं । ईरान और इराक एक ही इस्लाम धर्म के राष्ट्र हैं, किन्तु, किस प्रकार प्राण-घातक युद्ध में संलग्न हैं। पश्चिम के इसाई राष्ट्र एक धर्म के अनुयायी होते हुए भी गत युद्धों में कितना भीषण जन-संहार कर चुके हैं और आज भी कुछ-न-कुछ कर ही रहे हैं । दूर, क्यों जाएँ, पड़ोसी देश पाकिस्तान को ही देख लीजिए | धर्म के उन्माद की भीषण मानसिक दु:स्थिति में ही एक दिन पाकिस्तान की स्थापना हुई थी | महान भारत से अपना अंग विच्छेद कर लिया गया था । और, धर्म के नाम पर इस दुर्नाम माया-जाल में उलझ कर भारत में सुख-चैन से रहते हुए भी लाखों मुसलमान बन्धु अपने तथाकथित धर्म-देश में पहुँचे थे, स्वप्नोपम स्वर्ग सुख भोगने को | परन्तु, हुआ क्या ? ताजा खबर है, भारत के इन प्रवासी बिहारी और अन्य मुसलमानों का वहाँ के पूर्वस्थ पठान आदि मुसलमानों द्वारा इतना दर्दनाक कतलेआम किया जा रहा है कि कोई भी सहृदय आँसुओं की धारा बहाए बिना नहीं रह सकता । इन पथ-भ्रष्ट सिक्खों के अज्ञानग्रस्त मनोजगत के तथाकथित खालिस्तान विशेष का क्या हाल होगा? जो सिक्ख बन्धु भारत से बाहर पश्चिम देशों में रहते हैं तथा (४५९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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