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________________ सम्पत्ति अग्नि दाह में भस्म कर दी जाती है | जो धर्म सद्भावना का अमृत-जल लेकर संसार की आग को बुझाने के लिए यात्रा पर अग्रसर हुए थे, आज वे ही धर्म खुद आग लगा रहे हैं । मानव जाति की धन-सम्पत्ति को तो नष्ट कर ही रहे हैं, साथ ही मानव जाति की उदात्त संस्कृति को भी भस्मसात करते जा रहे __ आज मानव-जाति को तथाकथित धर्मों से पराड,मुख नास्तिकों तथा काफिरों से उतना खतरा नहीं है, जितना कि धर्मरक्षा का दावा करने वाले इन तथाकथित धर्मान्ध आस्तिकों से है। आज धर्म रक्षकों के काले कारनामे विश्व में धर्म-विरोधी नास्तिकों की संख्या ही बढ़ा रहे हैं । और, यह कोई असंगत भी नहीं है । जब कि धर्म के पवित्र वक्ष पर सम्प्रदायवाद के भीषण भूत निर्लज्ज नंगा नाच करते हैं, तब ऐसा ही होता है । कभी था वह समय, जब ईश्वर या गॉड तथा सत् श्री अकाल आदि एक ही पवित्र ज्योति के वाचक शब्द थे किन्तु लगता है, आज ये सब शब्द अपना मूल अर्थ खो बैठे हैं, और इन पर साम्प्रदायिक मान्यताओं, क्रिया-काण्डों तथा अन्ध-विश्वासों के भिन्न-भिन्न लेबल लग चुके हैं । फल-स्वरूप ये पवित्र शब्द परस्पर लडते-झगडते इतनी अधिक दूर जा पड़े हैं कि कभी परस्पर ये मिल भी सकेंगे या नहीं ? अन्तर्मन शंकाग्रस्त हो उठा है । ईश्वर, खुदा और गॉड आदि बहुत दूर पृष्ठभूमि में चले गए हैं । आज तो उनसे भी अधिक प्रतिष्ठा के सिंहासन पर पण्डे, पुजारी, मुल्ला, मौलवी, पादरी और ग्रन्थी आदि गुरु शब्द वाच्य लोग ही विराजमान हो गए हैं । इनमें से अधिकतर वे लोग हैं, जो धर्म के नाम पर हिंसा, हत्या-काण्ड, आतंक, अग्निदाह, लूटमार आदि की जलती आग पर अपने जघन्य स्वार्थों की रोटियाँ सेंक रहे हैं। इन्हें धर्म से कुछ लेना नहीं है | बस, इनका तो एक मात्र लक्ष्य हैधर्म के सस्ते नाम पर अपने स्वार्थों की पूर्ति होती रहे । हजारों मन्दिर खण्डहर होते जा रहे हैं । हजारों ही मस्जिदें मौत की गोद में पहुंच रही हैं। एक प्रबुद्ध मुस्लिम बन्धु ने लिखा था- देश में ३२ लाख से अधिक मस्जिदें निर्जन, सुनसान पड़ी हैं। उन्हें कोई पूछनेवाला भी नहीं है, (४५४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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