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नहीं कर सकता । संस्कृत सूक्तियों में तो कहा ही है परन्तु एक हिन्दी के महान कवि ने भी कहा है -
"लीक-लीक गाड़ी चले, लीक ही चले कपूत | तीनों लीक पर न चले, शायर, सिंह, सपूत ।।"
गरुड़ आकाश में सब पक्षियों से अधिक ऊँचाई पर उड़ता है और हंस भी आकाश की ऊँचाई को स्पर्श करके उड़ता है । गरुड़ को तो हमने देखा नहीं, पर हंस की उड़ान तो हमारे सामने है । वह गरुड़ से भी अधिक ऊपर जाता है । क्या वह उड़ान भरता है, तब पहले से आकाश में उसका कोई मार्ग निश्चित है। क्या कोई राज-पथ आकाश में बना हुआ है । वह तो उड़ान भरता जाता है, पथ स्वत: बनता जाता है ।
आप लोग व्यापारी हैं । आपके दादा कुछ और काम कर रहे थे । आपके पिता ने और काम किया, व्यवसाय को आगे बढ़ाया । आप उससे भी आगे बढ़कर नए आयाम खोल रहे हैं । फैक्टरियाँ लगा रहे हैं, विदेशों से आयात-निर्यात का काम कर रहे हैं । कितना परिवर्तन आ गया है - व्यापारिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में और साथ में धार्मिक क्षेत्र में भी । भविष्य में आने वाली पीढ़ी स्वयं अपने मार्ग का निर्माण करेगी । तभी सही अर्थ में जीवन का विकास हो सकेगा । कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, बँधी-बँधाई कालापेक्ष्य लकीरों पर ही चलते रहेने से न कभी उन्नति हुई है और न कभी होगी।
श्रमण भगवान महावीर एवं प्रबुद्ध विचारकों का एक ही स्वर रहा हैनिरन्तर आगे बढ़ते जाओ, ऊपर उठते जाओ । एक शिखर से दूसरे उत्तुंग शिखर पर चढ़ते जाओ, नीचे की ओर मत लुढको । ऊर्ध्वमुखी बनकर गति करो। अधोमुखी दृष्टि मिथ्यात्व है और ऊर्ध्वमुखी- दृष्टि सम्यक्त्व है ।
याद रखिए, भीख माँगने वाले भिखारी को क्या स्वप्न आएँगे? भीख माँगने के ही स्वप्न देखता रहेगा वह, परन्तु जो तेजस्वी व्यक्ति दिव्य - कर्म के आधार पर आगे बढ़ते हैं, जिनका मन मस्तिष्क ज्योतिर्मय विचारों से प्रकाशमान है, जिनकी बुद्धि विद्युत्-सी चमकती-दमकती है और जिनके हाथ महान सत्कर्म
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