________________
नेता का घृणा एवं विद्वेष से मन पागल हो जाए, और इस राक्षसी अणुबम का नभ से ही प्रयोग कर दे, तो वह समग्र पृथ्वी को निर्जीव शून्य मरघट में बदल डाले | यह बदलना ऐसा होगा, कि वह अपनी रक्षा के कितने ही उपाय करे,
4
फिर भी वह स्वयं और उसका राष्ट्र भी भस्म हुए विना नहीं रहेगा । प्रभु कृपा करें कि आज के ये राष्ट्र नेता हिंसा की भयंकरता को समझें और उसे ठुकरा कर भगवती अहिंसा की सच्चे दिल से उपासना करें । इस रूप में ही उनकी मानवता, मानवता रह सकती है । मानवता की अर्थवत्ता और गुणवत्ता अहिंसा और अहिंसा के मैत्री, करुणा, सद्भावना एवं बंधुता आदि के पवित्र रूपों में सुरक्षित रह सकती है ।
दानवी हिंसा का एक रूप, रूप क्या कुरूप, आज धर्म-रक्षा के नाम पर फैल रहा है । कुछ लोग हैं, जो आँखों के होते हुए भी अन्धे हैं । अधर्म के पथ पर चल रहे हैं और समझ रहे हैं कि हम धर्म-पथ के यात्री प्रभु चरणों में पहुंच रहे हैं । कलम भी काँपती है, उनके धर्म के पवित्र नाम पर किए जाने वाले कुकृत्यों को अंकित करने में । धर्म के नाम पर पशु बलि तो चिर-काल से दी जाती है, इतना ही नहीं नर बलि तक दी जाती रही है, मन्त्रों द्वारा देवी-देवताओं के चरणों में । हृदय पीड़ा से भर जाता है कि नर बलि ने आज एक नया रूप भी ले लिया है, अपने धर्म की रक्षा एवं पहचान बनाने का I अपने से भिन्न धर्म के लोगों की सामूहिक हत्याएँ की जा रही हैं । बालक, युवा, वृद्ध सभी को अवसर मिलते ही गोलियों से भुन दिया जाता है । इन निर्दोष लोगों की ये हत्याएँ ऐसी दानवी हत्याएँ हैं, जिस पर भी हत्यारे खिल-खिला कर हंसते हैं और अपने को बलिदानी शहीदों की श्रेणी में गिनते हैं । इन लोगों से भी अधिक भयंकर हत्यारे वे हैं जो इन नर-पिशाचों को धर्म पर मर मिटने वाले शहीद मानते हैं और यथाप्रसंग उनके सत्कार - सम्मान के समारोह आयोजित करते हैं । प्रभु, मनुष्य के हृदय का यह घिनौना रूप कब समाप्त होगा ? और कब उसकी मूर्च्छित और मृत होती हुई मानवता फिर से जीवित होगी ?
"
यह लेख काफी लम्बा हो रहा है, फिर भी हिंसा-वृत्ति के उद्भव की संक्षेप में चर्चा कर ही लूँ । मनुष्य अन्दर से तो क्या, बाहर की आकृति से भी मांसाहारी नहीं है । उसके शरीर की रचना और प्रहारक नख आदि हिंसक पशुओं जैसे नहीं हैं । फिर भी वह कौन-सा दुर्दिन था, जब उसने मांस का, आहार के रूपमें उपयोग करना शुरु किया । दीन-हीन मूक पशु-पक्षियों को
(४१७)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org