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हिंसा, शुद्ध वस्तुओं में अशुद्ध वस्तु के मिलावट के रूप में भी अपना भयंकर रूप छिपाये बैठी है | और बात छोड़िये, खाद्य और पेय के रूप में जो जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं, वे भी मिलावट से खाली नही रही हैं । मनुष्य रोग-मुक्ति के लिए जीवन-रक्षा के रूप में औषधी लेता है । किन्तु, उसे पता नहीं, जिसे वह अमृत समझे हुए है, वह अमृत नहीं, प्रत्युत उसमें भी प्राण-घातक भयंकर विष भी मिला है ।
__ मनुष्य अपने आपको सुन्दर प्रदर्शित करने के लिए आदिकाल से शृंगार का पुजारी रहा है । प्राचीन-काल के शृंगार प्रसाधन पुष्प, स्वर्णालंकार आदि के रूप में मनुष्य को सुसज्जित करते थे । किन्तु आज ? आज की स्थिति क्या है? यह सब के समक्ष है । शृंगार-प्रसाधनों के लिए प्रतिदिन सहनाधिक मूक प्राणियों की इतनी क्रूरतापूर्वक हत्या की जाती है, कि एक बार तो किसी दानव का दिल भी दहल जाए । किन्तु, मनुष्य यह सब-कुछ जानते हुए भी आँख-मूंद कर तथाकथित रक्त-रंजित सौन्दर्य प्रसाधनों का अन्धाधुन्ध प्रयोग किए जा रहा है। मानव, मन्दिरों, उपाश्रयों, गुरुद्वारों आदि धर्म-स्थानों में दया-धर्म की लम्बी-चौड़ी बातें सुनता है, उन्हें सुनकर स्वीकृति में मस्तक हिलाता है, किन्तु बाहर आ कर करता वही है, जो करता आ रहा है । लगता है, धर्म केवल सुनने मात्र के लिए रह गया है, करने के लिए नहीं |
काफी लम्बे समय से हिंसा के नग्न-ताण्डव की एक और चर्चा सुन रहे हैं | वह अणु-युद्ध की | युद्ध वैसे भी एक भयंकर अभिशाप है, मानव-जाति के लिए | और, अणु-युद्ध तो इतना भीषण है कि उसकी बात चलते ही सहृदय मानव का जर्रा-जर्रा कांप उठता है । ६ और ९ अगस्त १९४५ को जापान में अमेरिका द्वारा अणुबम से ध्वस्त किए गए हिरोशिमा-नागासाकी की वर्षगाँठ इन्हीं दिनों मनाई गई है | उस अणुबम के गिराने से तत्काल ही दो लाख व्यक्ति काल के गाल में पहुंच गए थे । बाद में अनेक व्यक्ति मरते रहे और अब तक उनकी संख्या पाँच लाख से कहीं अधिक हो गई है । इतने वर्षों के बाद भी वहाँ जो बच्चे आज जन्म ले रहे हैं, उनमें अधिकतर अपंग होते हैं। कई ऐसे अपंग होते हैं कि उनके लिए जीना-मरना बराबर है । वैज्ञानिकों का कहना है- तत्कालीन अणुबम की अपेक्षा, आज के अणु-आयुध हजारों गुना अधिक शक्तिशाली हैं । इनके समक्ष वह बम तो केवल पटाखे जैसा लगता है । और, अब तो आकाश में नक्षत्र-युद्ध की तैयारियाँ हो रही हैं । ये ऐसी तैयारियाँ हैं कि किसी राष्ट्र के
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