SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वर्ग लोक में किल्विषिक देव भी होते हैं । उनकी दशा अछूतों जैसी होती है । देव बन गए तो क्या, रहे तो एक प्रकार से अछूत ही | मानव सभ्यता में आज अस्पृश्यता को बुरी नजर से देखा जाता है, और उसके लिए महात्मा गांधी जैसे महापुरुष सत्याग्रह करते हैं, सरकार कानून बनाती है और अस्पृश्यता निवारण के लिए यथाशक्य सामाजिक आन्दोलन भी किये जाते हैं । क्या स्वर्ग में कोई महात्मा गांधी नहीं है? क्या न्यायोचित सरकार नहीं है? क्या सामाजिक चेतना जागृत नहीं है । अपेक्षा है, वहाँ कोई महात्मा गांधी जैसा महान् आत्मा पहुँचे । यहाँ अपने को महात्मा गांधी से भी ऊँचा मानने वाले महान् सन्त स्वर्ग में जाकर आखिर क्या करते हैं? कुछ समझ में नहीं आता । स्वर्ग में कुछ ऐसे निकृष्ट देव भी होते हैं, जो दूसरे देवों की देवियों का एवं विशिष्ट अलंकारादि का अपहरण करते हैं । खेद है, देव होकर भी चौर्य-कर्म जैसे असामाजिक अपराध कर्मों में लिप्त हैं । जैनों में तो नहीं, किन्तु हिन्दुओं में तो ऐसे भी देवता हैं, जो मांस खाते हैं, मदिरा पीते हैं और उन्मत्त होकर धरती के निर्दोष लोगों को सताते हैं। हजारों, लाखों, यहाँ तक कि करोड़ों बकरे और भैंसे बलि के रूप में देवताओं को बलि देने के लिए काट दिए जाते हैं । केवल बेचारे मूक पशु ही नहीं, नरबलि के रूप में अबोध बच्चे, युवक आदि का बलिदान भी किसी-न-किसी रूप में आज भी चल रहा है । मुझे आश्चर्य होता है, यहाँ बात-बात पर अहिंसा की गुहार मचाने वाले महान् अहिंसाव्रती साधक मरकर स्वर्ग में जाते हैं, तो वे मानव लोक में आकर आकाश में यत्र-तत्र खड़े होकर उक्त हिंसा के विरोध में उद्घोषणा क्यों नहीं करते? यदि वे इस सम्बन्ध में थोड़ासा भी प्रयत्न करें, तो लाखों-करोड़ों मूक पशुओं के प्राणों की रक्षा हो सकती है । क्या वे स्वर्ग के सुखोपभोग में इतने अधिक डूब जाते हैं कि अपनी दया-करुणा की चिर प्रिय साधना भूल जाते हैं ? कहाँ चली जाती है, वहाँ उनकी वह अहिंसा भगवती की अखण्ड उपासना? स्वर्ग के अनेक वर्णन उन्मुक्त विलासिता के उतने अधिक घृणित वर्णन हैं कि जिन्हें यहाँ अंकित करने में कागज, कलम और स्याही गन्दे हो जाते हैं । इतनी अधिक अश्लीलता के वर्णन हैं, जिन्हें साधारण पुस्तकों में भी स्थान नहीं (३६४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy