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के समान ही परिवार की जीवन-यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । वह धर्मशास्त्रों का मुक्तभाव से अध्ययन और तदनुसार आचरण कर सकती है ।
उस युग की दासप्रथा तो नारकीय जीवन का एक सजीव चित्र उपस्थित करती है । दास और दासी के रूप में स्त्री, पुरुष, बालक, युवा एवं युवतियों को पशुओं की तरह बाजार में बेचा जाता था । दासों का समाज में कुछ भी मानवीय मूल्य नहीं था । भगवान महावीर ने कहा - दासों पर अत्याचार अधर्म है, पाप है | कर्मादान रूप १५ महापापों को दासों के क्रय-विक्रय को भी एक महापाप माना है, महावीर ने | और अपने श्रावकों (सद्धर्म के उपासक गृहस्थों) के लिए उसका सर्वथा निषेध किया है।' जनकल्याण की दिशा में भगवान महावीर की विचारक्रान्ति एक समग्र विचारक्रान्ति है, चतुर्मुखी क्रान्ति है।
आज अपेक्षा है उक्त चतुर्मुखी क्रान्ति के स्वर को पुन: नया स्वर देने की । उक्त स्वर में विश्च के समग्र शुभचिन्तकों के, जननायकों के, धर्मोपदेशक गुरुजनों के जनमंगल स्वर समाहित है । जन-कल्याण की दिशा में महावीर का स्वर किसी अन्य स्वर से टकराता नहीं है, अपितु सहयात्रा के लिए कर्म का हाथ मिलाता है । आइए, हम सब मिलकर उक्त समग्र क्रान्ति के स्वर को पुन: मुखरित करें।
मार्च-अप्रैल १९७६
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