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जीवन स्वयं ही एक दर्शन है
प्रत्येक मनुष्य का अपना एक दर्शन होता है । मनुष्य का अपना विचार ही उसका दर्शन होता है | उसके जीवन की सफलता का मुख्य आधार उसका विचार ही होता है । सफलता और विफलता जीवन में मुख्य नहीं है, मुख्य बात यह है कि उसका अपना दृष्टिकोण क्या है? जब एक बार मनुष्य अपना दृष्टिकोण स्थिर कर लेता है, तब उसी के आधार पर वह अपने जीवन के लक्ष्य को स्थिर कर पाता है । मनुष्य को क्या होना है? यह निर्णय ही उसके जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है | ठीक समय पर ठीक प्रकार का निर्णय करना आसान कार्य नहीं है | अपने जीवन को और उसकी समग्र शक्ति को किसी एक लक्ष्य में नियोजित करना ही जीवन की सफलता का आधार है । अत: सर्वप्रथम मनुष्य को अपना एक स्पष्ट लक्ष्य निश्चित करना होगा । फिर लक्ष्य की सफलता के लिए . प्रयास करना होगा |
जीवन और दर्शन
___ मनुष्य के जीवन में गंभीरता दर्शन से ही आती है । जब तक चिन्तन गंभीर न हो, तब तक उसके जीवन में उज्ज्वलता नहीं आ सकती । जो व्यक्ति जिस प्रकार के व्यवसाय में अपने मन को लगाता है, वह उस व्यवसाय में उतनी ही योग्यता प्राप्त कर लेता है । कभी-कभी यह भी देखा जाता है कि पुराने चिन्तन के संस्कार मनुष्य को किसी विशेष लक्ष्य की ओर ले जाते हैं । मनुष्य का जैसा अभ्यास होता है, उसी के अनुसार उसकी अभिरुचि बनती है, और उसी के अनुसार काम करने की क्षमता भी बढ़ती है । व्यापार का चिन्तन करने से मनुष्य व्यापारी होता है, अध्यात्म का चिन्तन करने से मनुष्य अध्यात्मवादी होता है और अन्य किसी विषय का चिन्तन करने वाला उसी में निपुणता प्राप्त कर लेता है, मनुष्य के मन का यह स्वभाव है कि जिस प्रकार का उसमें चिन्तन होता है, उसका जीवन फिर उसी साँचे में ढल जाता है । यह कहना कठिन होगा कि
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