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क्रान्ति के देवता श्रमण भगवान महावीर
भारत की मनोभूमि के कण-कण में प्राचीनतम ऋषि-मुनियों के अगाध ज्ञान के ज्योतिर्मय कण बिखरे पड़े हैं । उपनिषदों के प्रायः प्रत्येक पृष्ठ पर दिव्य अध्यात्म ज्योति के दर्शन होते हैं । जैनागमों की प्रत्येक पंक्ति और प्रत्येक वाक्य में आत्म-बोध की समुज्ज्वल ज्योत्स्ना अभिभासित हो रही है । पिटकों में जहाँ कहीं आपकी नजर पड़े, आप पायेंगे कि बोधि- ज्ञान की अन्त:सलिला सरस्वती फूट रही है । यही है भारतीय संस्कृति का अमृत-तत्त्व ।
विशाल बुद्धि व्यासं के महाभारत में जिन जीवन-गाथाओं का उपनिबन्धन हुआ है, वह एक भारतीय जन-जीवन का जीवित काव्य है । राम की रामायणीय गाथाओं में, जीवन के जो ज्योतिर्मय - चित्र अंकित हुए हैं, वह भारतीय समाज का और विशेषत: पारिवारिक जीवन का भव्य प्रतिबिम्ब है । जैनपरम्परा के पुराणों में काव्यमय भाषा के द्वारा भारतीय जन-जीवन का जो सुन्दर रूप रेखांकित किया गया है, वह अपने आप में असाधारण है । बौद्ध-जातकों में मानवजीवन के बहुविध रंगीन चित्र प्रस्तुत किए गये हैं । ये सब ग्रन्थ भारतीय संस्कृति के प्राण कोष हैं; जिनका साहित्यकोष में युग-युग से संचय होता चला आया है ।
महर्षि मनु ने अपनी मनुस्मृति में ब्राह्मण समाज का तद्युगीन एक सुन्दर संविधान तैयार किया था। भगवान महावीर के प्रमुख गणधरों ने अपने आचारसूत्रों में साधकों के लिए एक सुन्दर आचार संहिता तैयार की थी । वह अपने आप में बहुत सुन्दर थी ।
भारत के सांस्कृतिक इतिहास में महावीर और बुद्ध का समय निश्चय ही एक स्वर्णयुग कहा जा सकता है । ईसा पूर्व षष्ठी शताब्दी में समग्र विश्व में
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