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लिए अनुमति तो बुद्ध ने दी, परन्तु बहुत आनाकानी और हिचक के साथ । परन्तु महावीर प्रारंभ से ही इस दिशा में उदार रहे हैं । कैवल्य प्राप्ति के बाद अगले दिन ही उन्होंने जहाँ गौतम जैसे ब्राह्मण मनीषियों को आर्हती दीक्षा दी, वहाँ चन्दना जैसी राजकुमारियों को तथा अन्य अनेक साधारण जाति की महिलाओं को भी दीक्षित कर अपने तीर्थ में श्रमणी परम्परा को मुक्त भाव से प्रचलन किया । महावीर को इसमें न कोई आनाकानी है, न कोई हिचक है । श्रमण के समान श्रमणी भी बराबर की महाव्रती है । आध्यात्मिक भूमिकाओं पर वह श्रमण के बराबर आरूढ होती जाती है और अन्त में मुक्ति लाभ प्राप्त कर आत्मभाव से परमात्म भाव की अन्तिम विकास भूमिका पर पहुंच जाती है ।
आर्य चन्दना की भूमिका
आध्यात्मिक भूमिका ही नहीं, आर्य चन्दना, सामाजिक भूमिका का दायित्व भी सफलता के साथ वहन करती है । महावीर के निर्देश पर वह ३६ हजार आर्याओं के विराट् श्रमणी संघ का नेतृत्व करती है । इस स्थिति में वह गणधर गौतम के समकक्ष है । आध्यात्मिक निर्देशन उसका गौतम से किसी प्रकार भी कम नहीं है । कल्पसूत्र इसके लिए स्पष्ट साक्षी है, जिसमें बताया गया है कि साधु संघ में सात सौ श्रमण केवल ज्ञान पाकर सिद्ध हुए हैं । जबकि साध्वी संघ में चौदह सौ श्रमणियाँ सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त हुई हैं । इसका यह अर्थ है कि आर्य चन्दना का शासन कितना अधिक स्वच्छ, निर्मल, सशक्त एवं सक्षम था और इसके मूल में स्वयं भगवान महावीर हैं और है उनका तत्त्व बोध एवं धर्म शिक्षण |
महावीर के ये गलत उत्तराधिकारी
परन्तु खेद है, भगवान महावीर के पश्चात्कालीन उनके ही अनेक उत्तराधिकारी अपने महान गुरु की ज्योति को ठीक तरह प्रज्ज्वलित नहीं रख सके । यदि ये भविष्य के शिष्य सजग रहते, गुरुदेव की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार में अपने को सर्वात्मना समर्पित करते रहते तो भारत की नारी अवश्य ही प्रताड़नाओं, यंत्रणाओं, यातनाओं तथा अपभ्राजनाओं से कभी की मुक्त हो गई होती । भारतीय नारी की यह स्थिति न होती, जो आज भी उसकी चिरागत दासता की सूचक है ।
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