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________________ पश्चात्कालीन श्रमण एवं श्रावक प्रभु महावीर की देशना-ज्योति को प्रज्ज्वलित नहीं रख सके, इतनी सी बात ही पर्याप्त नहीं है | खेद तब होता है, जब हम महावीर के श्रमणों को नारी गौरव के विपक्षी खेमे में खड़ा देखते हैं । ये दल बदलू परम्परागत विरोधियों की अपेक्षा अधिक खतरनाक साबित हुए हैं । तन पर महावीर के दल का चिह्न है, और मन बदलकर विरोधी प्रतिपक्ष में जा मिला है, उस प्रतिपक्ष में जो प्रारम्भ से ही नारी-गौरव को धराशायी करने में लगा हुआ था । महावीर के नारी मुक्ति एवं नारी-स्वातंत्र्य के महान आदर्शों को एक तरह मटियामेट करके रख दिया है, महावीर के ही भक्त कहे जाने वाले कुछ धर्मध्वजी लोगों ने । नारी युग और हम सब का कर्तव्य : आज का युग पुन: करवट बदल रहा है । नारी जागरण का शंख बज उठा है, शंख ध्वनि ही नहीं, घोर दुन्दुभिनाद हो रहा है । आज नारी फिर अपने अतीत के खोए गए गौरव को, अधिकार को पाने के लिए यत्नशील है। वह विकास की सब दिशाओं में जयकारों के साथ अग्रसर हो रही है । अत: महावीर के भक्त श्रमणों एवं श्रावकों से भी अपेक्षा है कि वे अपनी मध्यकाल की सामन्ती मनोवृत्ति को बदलें, छोड़ें, और महावीर के उच्च आदर्शों का अनुसरण करें । नारी मुक्ति के समाजोपयोगी आन्दोलन में हम सब को सहयोग देना चाहिए । दकियानूसी प्रतिगामी मनोवृत्ति से मुक्त हो कर नारी जागरण से प्रस्तुत आन्दोलन में हमें अग्रगामी बनना चाहिए । अशिक्षा, अन्धविश्वास, तथा दहेज आदि कुप्रथाओं के कुचक्रों के नीचे नारीजाति कब से पिसती आ रही है, कदम-कदम पर अपमान एवं तिरस्कार की ठोकरें खाती आ रही है । अब यह सब नहीं चल सकेगा। समय बदल रहा है । आज के समय के स्वर में महावीर का अढ़ाई हजार वर्ष पहले का महास्वर पुनः मुखरित हो रहा है । अपेक्षा है, महावीर के भक्त उक्त स्वर को पहिचानें, ताकि भारतीय पुरुष समाज नारीजाति की उत्पीड़क दहेज आदि कुप्रथाओं को ध्वस्त कर अपने पुराने पापों का समय पर सही प्रायश्चित्त कर सके । दिसम्बर १९७५ (७४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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