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________________ नारी के प्रबल पक्षधर: महावीर महाभारत के बाद अब तक के काल में एक महान् ज्योतिर्मय पुरुष तीर्थंकर महावीर है, जो नारी की गुरुगरिमा के प्रबल पक्षधर हैं | वह माता की गरिमा से प्रभावित होकर गर्भ काल में ही प्रतिज्ञा लेते हैं कि “जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे, दीक्षित नहीं होऊँगा, गृहत्याग कर अनगार न बनूँगा।" जो अनगार होने के लिए ही धरती पर आया है, वह यह प्रतिज्ञा करता है कि माता के मन को पीड़ा होगी, अत: मैं दीक्षा न लूँगा। कितनी विचित्र बात है। इसमें विचित्रता माता के मातृ-ऋण की है, जिसे वैराग्यमूर्ति महावीर ने वैराग्य की झोंक में भी विस्मृत नहीं किया | बुद्ध और महावीर : एक अन्तर बुद्ध अर्धरात्रि में पत्नी को योंही बिना कुछ कहे-सुने उससे कन्नी काट कर वन को चले जाते हैं, वैरागी बनकर | किन्तु महावीर यशोदा को समझाते हैं, कर्तव्य का बोध देते हैं, दो वर्ष तक तत्त्वचर्चा के द्वारा परिवार का समाधान करते हैं, तब कहीं उनका महाभिनिष्क्रमण होता है । गलत वैराग्य के नशे में झूमने वाले वैरागी लेखक यद्यपि इस प्रसंग पर मौन हैं, परन्तु मानव हृदय का भावनात्मक इतिहास साक्षी है, महावीर पत्नी को समाधान देकर ही प्रव्रज्या के पथ पर अग्रसर हुए । भगवान महावीर और नारी उस युग में दासियों का क्या जीवन था ? एक तरह का नारकीय जीवन ही था वह | उनके तन और मन के साथ पशुओं से भी गया गुजरा व्यवहार होता था । समाज के साधारण मानवीय अधिकारों से भी बहिष्कृत थीं वे । महावीर ने दासी का रूप लिए दीन-हीन नारी को भी गौरव प्रदान किया है। अनेक बार दासियों के हाथ से ही भिक्षा ग्रहण की है उन्होंने | चन्दना जैसी अनेक नारियों को दास्य बन्धन से मुक्त करने का श्रेय भगवान् महावीर को प्राप्त है, जो उस युग में दु:सम्भव ही नहीं, एक असम्भव कार्य था । अपने श्रावकों को दासों के क्रय-विक्रय के व्यापार से रोक कर उन्होंने दास प्रथा के मूल को समग्रता से उखाड़ा नहीं, तो उसे हिलाकर ढीला और जर्जर अवश्य कर दिया । (७१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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