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________________ और प्रलोभन के सघन अन्धकार में दीपशिखा की भाँति प्रज्वलित है, निर्भय भाव से दैत्यराज रावण की अदम्य शक्ति से युद्धरत है । और महाभारत में द्रौपदी को देखा है कभी ? यह महाप्रचण्ड शक्ति की अधिष्ठात्री राजकुमारी भारतीय इतिहास की कभी न लुप्त होने वाली अक्षुण्ण गरिमा है । वह अन्याय एवं अत्याचार के प्रति इतनी रौद्ररूपा चण्डिका है कि दावाग्नि है मानो प्रलय काल की । केशपाश पकड़ कर सभा में खींच कर लाने वाले और साड़ी उतार कर भरी सभा में उसे नग्न करने की कुचेष्टा में लगे दुःशासन को ललकारती है कि जब तक तेरे हाथों से खुले इस केशपाश (चोटी) को तेरे उष्ण रक्त से न धो लूँगी तब तक यह खुला ही रहेगा, बँधेगा नहीं । और यह केवल गुस्से में की गई अर्थहीन वाणी नहीं थी । द्रौपदी ने जो कहा था, महाभारत युद्ध में वह प्रतिज्ञा वचन शत-प्रतिशत पूरा किया गया । और साथ ही वह कोमल भी इतनी है कि आश्चर्य मुग्ध हो जाना पड़ता है । अपने देवकुमार जैसे अनुपम सुन्दर पाँच पाँच पुत्रों के एक साथ हत्यारे अश्वत्थामा को वह दया की देवी सहसा क्षमा कर देती है, उसे मृत्यु दण्ड से बचा लेती है, इसलिए कि इसकी वृद्धा माँ का फिर कौन सहारा रहेगा ? दो-चार उदाहरण क्या, एक से एक दिव्य नारियाँ थी भारत की, जिन पर भारत ने गौरवानुभूति की है, और करेगा । बाद की नारी का पतन परन्तु महाभारत के बाद भारत की नारी का गौरव - शिखर से पतन होना शुरु हो जाता है । उसकी गरिमा की उज्ज्वल ज्योति धूमिल होने लगती है । और अपना वर्चस्व खोती खोती एक दिन वह पुरुष की एक दीन-हीन दासी बनकर रह जाती है । मनुस्मृति कहने लगती है “बाल्यकाल में नारी को पिता के शासन में, संरक्षण में रहना होता है, यौवन में पति के और वृद्धावस्था में पुत्र की आँखों के नीचे । स्त्री को स्वतंत्रता का कोई अधिकार नहीं है ।” धर्म सूत्र बन गया ‘न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति । वेदान्त के महान् आचार्य कहने लगे नरक का एक ही द्वार है, और वह है नारी द्वारं किमेकं नरकस्य, नारी ।" कहा जाने लगा- नारी देखते ही मन को हर लेती है, और स्पर्श होते ही बल को । अत: वह प्रत्यक्ष राक्षसी है - " नारी तुलसीदास नारी के हीनत्व को इतने पशु के समान ताड़न करते रहना चाहिए ताड़न के अधिकारी ।" " Jain Education International प्रत्यक्ष राक्षसी ।" और अभी-अभी बाबा नीचे स्तर पर दुहरा गए हैं कि नारी को ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, ये सब " -- (७०) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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