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महावीर की दृष्टि में नारी की गरिमा
भारत की नारी एक दिन अपने विकासक्रम में इतनी ऊँचाई पर पहुँच चुकी थी कि वह सामान्य मानुषी नहीं, देवी के रूप में प्रतिष्ठित हो गई थी । वह वैदिक युग में वेद मंत्रों की स्रष्टा थी और उपनिषद् काल में याज्ञवल्क्य जैसे महान तत्त्वज्ञानी महर्षि से विद्वत्परिषद् में गार्गी के रूप में शास्त्रार्थ करती थी । नारी की पूजा के कर्मक्षेत्र में ही स्वर्ग के देवता रमण करते थे, प्रसन्न होते थे। उस युग में वह पुरुष का अर्धभाग थी, उसके बिना पुरुष का पुरुषत्व अधूरा रहता था | महादेव शिव की अर्धनारीश्वर के रूप में अंकित मूर्तियाँ आज भी उस भाव की मूक साक्षी हैं | धारेश्वर भोज देव ने पातंजल योग सूत्र की अपनी 'राज मार्तण्ड वृत्ति के मंगलाचरण में सर्वप्रथम इसी दिव्यभाव को स्मरण किया है " देहार्द्ध योग: शिवयो: स श्रेयांसि तनोतु वः ।"
आदि शिक्षिका
मानव सभ्यता के आदि युग में, प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी, मानव जाति की पहली शिक्षिकाएँ हैं । ब्राह्मी अक्षर ज्ञान की प्रतिष्ठापिका है, तो सुन्दरी गणित ज्ञान की | एक सारस्वत साहित्य के वैभव की देवी है, तो दूसरी राष्ट्र की भौतिक संपत्ति के हानि-लाभ का ब्योरा उपस्थित करती है । अविवाहित रह कर उक्त दोनों आजन्म कुमारियों ने मानव जगत् के बौद्धिक विकास-हेतु, जो बौद्धिक सेवा की है, वह पौराणिक काल से लेकर आज तक के इतिहास में अप्रतिम है, अद्वितीय है ।
रामायण और महाभारत काल में
रामायण में देखिए, सीता क्या है ? वह राक्षसराज रावण के न आतंक से प्रकंपित है, और न स्वर्ण लंका के स्वर्गोपम वैभव से ही आकृष्ट है । वह भय
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