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मैं चाहूँगा, आज का तरुण अपने धर्म, दर्शन, राष्ट्र एवं समाज की सांस्कृतिक गरिमा के अनुरूप अपने को प्रमाणित करे । उसके मन, वचन तथा तन के द्वारा निष्पादित निर्माण कार्यों में वह अनूठा विशिष्टीकरण होना चाहिए, जिसे देखते ही हर किसी सहृदय के मुख से सहसा शत-शत साधुवाद मुखरित होने लगें । हर जिन्दगी को जीने योग्य बनाने की दिशा में वज्र चरण अबाध गति से निरन्तर आगे बढ़ते रहें। विघ्न बाधाओं को कुचलते-मसलते- यही धरती के प्रत्येक तरुण रक्त को मेरा हार्दिक आशीर्वाद है ।
यह भगवान महावीर का २५०० वाँ निर्माण पर्व है । सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पुनर्जागरण के उस महान् दैदीप्यमान चिन्मय ज्योतिपुंज के द्वारा प्रस्तावित 'धर्म-क्षेत्रे कुरुक्षेत्रे' के सत्कर्म समर के अतिरथी, महारथी, अर्धरथी, जैसी भी अपनी योग्यता हो, तदनुरूप विजेता रथी बनिए, इसके अतिरिक्त मुझे और कुछ कहना नहीं है । महावीर के वीर योद्धा तरुण ! 'शुभास्ते पन्थान:' 'भद्रं ते भूयात् ।'
लाभस्तेषां जयस्तेषां, कुतस्तेषां पराजयः । येषां हृदि, महावीरो, राजते भगवान् स्वयम् ।।
नवम्बर १९७५
(६८)
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