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________________ "" महाभारत का इतिहास आज भी उसका साक्षी है, इसीलिए भगवान महावीर ने कहा था हर आचरण से पूर्व विवेक विचार आवश्यक है ।" अस्तु, हर क्षण सजग रहिए । वर्तमान में साधारण-सी दिखने वाली दुर्भावना ही भविष्य में न जाने कब भयंकर रूप ले ले, सर्वनाश का कारण बन जाए । सद्भावना बनाम सत्कर्म का अनुमोदन शुभ भावना की भी यही स्थिति है । अपने मन को शुभ भावना से निरन्तर भावित रखिए 1 मन को निरन्तर कोई-न-कोई शुभ संकल्प देते रहिए। सत्कर्म स्वयं करने का विचार कीजिए, यथा प्रसंग दूसरों से कराने का भी भाव रखिए | और यदि करने कराने जैसी स्थिति न हो तो, महावीर कहते हैं, दूसरों को सत्कर्म करते देख या सुनकर उसका अनुमोदन ही कीजिए, उसके लिए सरल हृदय से प्रसन्नता ही अनुभव कीजिए । महान है वह व्यक्ति जिसके मन में सत्कर्म का कोई शुभ संकल्प उत्पन्न हुआ है, उससे भी महान है वह जो अपने संकल्प को दीर्घायु बनाता है, उसे कर्म का रूप देता है और वह उससे भी महान है, जो स्वयं सत्कर्म करता है, साथ ही दूसरों कराता भी है । अन्यथा कुछ लोग होते हैं, जो स्वयं तो सेवादि कार्यों के लिए दानादि कर लेते हैं । परन्तु जब उनसे कहा जाता है कि जरा साथ चलिए, दूसरे साथियों को भी प्रेरणा दीजिए, ताकि हमारी आवश्यकता की ठीक-ठीक पूर्ति हो जाए, तो झट इनकार कर देते हैं कि " ना भाई, हम से यह नहीं होगा, हमें तो जो करना था, कर दिया, हम दूसरों के पास नहीं जाएँगे ।" उन्हें यह पता नहीं कि वे इस तरह इनकार करके शुभ की पुण्य की विशाल होती धारा को अवरुद्ध कर रहे हैं, प्राप्त पुण्य को भी क्षीण कर रहे हैं, उसे मलिन बना रहे हैं । करने से कराना मुश्किल लोग कहते हैं कराना सहज है, करना मुश्किल है । मैं कहता हूँ सत्कर्म के क्षेत्र में यदि सही जायजा लिया जाए तो करना सहज है, कराना मुश्किल है । कराने के लिए दूसरों को प्रेरणा देने में, उन्हें उत्साहित करने में एक प्रकार से उनके व्यक्तित्व को उभारा जाता है, उल्लसित किया जाता है, जो प्राय: साधारण व्यक्ति के अहंकार को पसंद नहीं होता । अतः आमतौर पर व्यक्ति दानादि सत्कर्म स्वयं तो कर लेते हैं किन्तु दूसरों के पास जाकर सादर (६१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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