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परिवर्तन अनिवार्य है
आज का युग परिवर्तन का युग है । परिवर्तन आ कर धक्का दे रहा है, द्वार खटखटा रहा है, परन्तु पुरानी पीढ़ी दरवाजा खोलकर उसका हर्ष मुद्रा में स्वागत करने की अपेक्षा, द्वार बन्द किये अन्दर बैठी है । अन्दर भी चुपचाप न बैठकर उसे गालियाँ पर गालियाँ दिये जा रही है । याद रखिये इससे कार्य सिद्ध होने वाला नहीं है । यदि हम स्वयं प्रबुद्ध विचारों के साथ इस परिवर्तन के स्वागत के लिये स्वतः तैयार नहीं हुए तो परिवर्तन स्वतः आएगा और बलपूर्वक आएगा | क्योंकि परिवर्तन अनिवार्य है । किन्तु यदि ऐसा हुआ तो हम प्रभाव हीन हो जायेंगे । अतएव यदि हम युग को बदलना चाहते हैं तो अपने को बदलें, यदि हम अपने को बदलना चाहते हैं तो युग परिवर्तन के साथ चलें । आज युग परिवर्तन के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर चलने वाले ही सिद्धि और सफलता प्राप्त कर सकते हैं ।
विकट समस्याएँ
आज के युग की समस्याएँ बड़ी विकट हैं । विशेषतया आज भारतीय समाज के समक्ष गरीबी, अशिक्षा, बेकारी, बेरोजगारी, सामाजिक ऊँच-नीचता, साम्प्रदायिकता, गलत मान्यताएँ, नाना कुप्रथाएँ, कुण्ठाएँ, रूढियाँ और नाना भाँति के अन्धविश्वास जैसी बड़ी-बड़ी विकट समस्याएँ, सुरसा की भाँति मुँह फैलाये हुए निगलने को तैयार हैं । जरा चूके कि सब कुछ समाप्त | भारतीय समाज एवं धर्म को ऐसी भयावह स्थिति से बचाने के लिए हमें समाज और तथा कथित धर्म में बहुत कुछ परिवर्तन एवं संशोधन लाना होगा । तभी हम आज के इस विज्ञान
और टेक्नोलॉजी के युग में अपने आपको सुरक्षित रख सकेंगे, तभी पनप और फल-फूल सकेंगे।
पुनर्मूल्यांकन
सम्पूर्ण मानव जाति ने अब तक जो सांस्कृतिक विकास किया है,
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