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रीतिरिवाजों का, परंपराओं का मूलतः उच्छेदन करता है, यथा काल परिमार्जन एवं परिष्कार करता है, और कुछ सर्वथा नये नीति नियमों की स्थापना भी करता है । वह धरती पर नीति नियमों की एक नई सृष्टि रचनेवाला ब्रह्मा है, उपयोगी एवं जनहितोचित व्यवस्थाओं का संरक्षण करनेवाला विष्णु है, और अन्याय, अत्याचार तथा अनाचार पर आधारित एवं कालातीत होने के कारण निर्जीव एवं निष्प्राण मरणोन्मुख - परंपराओं का ध्वंस करने वाला रुद्र भी है । आचार्य उमास्वात के शब्दों में महावीर का अर्थसूत्र ही है - 'उत्पाद - व्यय - धौव्ययुक्तं सत् ।' जो ध्रुव है, फिर भी नवीन के उत्पाद और पुरातन के विनाश से हर क्षण युक्त है, वही सत् है, अर्थात सत्य है ।
सामयिक तीर्थंकरत्व
महावीर का यही सामयिक तीर्थंकरत्व है, जो अंग, वंग, कलिंग, मगध, विदेह कौशल, पांचाल, सौवीर, सिन्धु, कुरुजनपद आदि देशों में दूर- सुदूर तीस वर्ष तक हजारों भिक्षु और भिक्षुणियों को साथ लिए घूमता है, धर्म के नाम पर विहित यज्ञ - याज्ञादि की हिंसा का विरोध करता है, शूद्रों एवं नारियों के खोये हुए आत्म विश्वास को जगाता है, और घोषणा करता है एगे आया । ' अर्थात् विश्व की सब आत्माएँ एक हैं, एक स्वरूप हैं । ब्राह्मण हो, या शूद्र हो, अर्ध हो या अनार्य हो, स्वदेशी हो या परदेशी हो, स्त्री हो या पुरुष हो, सब आत्माएँ बिना किसी भेदभाव के अपना आध्यात्मिक एवं सामाजिक विकास कर सकते हैं । समग्र मानवजाति एक है एगा मणुस्साई ।'
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अन्दर से अक्रिय तो बाहर से सक्रिय
महावीर अन्दर में अक्रिय हैं, तो बाहर में सक्रिय हैं । अन्दर पूर्ण अकर्तावीतराग हैं, तो बाहर में इतने तूफानी कर्ता कि कुछ पूछो मत । अन्दर में नित्ति नारायण हैं, किसी से कुछ लेना देना नहीं है उन्हें, किन्तु बाहर में इतने अधिक कर्मलिप्त हैं कि विश्वमंगल की नव योजनाओं को दिन-रात स्थापित करने में लगे हैं । अनेक बार सत्कर्म करने वालों को, प्रशंसा से उत्साहित करते हैं तो अनेक बार पथभ्रष्ट लोगों की सार्वजनिक प्रताड़ना भी करते हैं, फिर भी अदर में एक रस हैं, एक रूप हैं, निन्दास्तुति से परे । निर्वाण के समय दो दिन का उपवास होते हुए भी उन्होंने लगातार सोलह प्रहर तक दिव्य वाणी की धाराप्रवाहित की है । इतना महान् कर्मयोगी दूसरा कौन मिलेगा ।
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