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________________ उछलते-मचलते, दौड़ते देख रहे हैं, वे ही सागर नहीं हैं । सागर इनके अन्दर गहराई में है, जिसमें से ये उद्वेलित हो रही हैं । महावीर सागर हैं, केवल तरंग नहीं हैं । महावीर क्रान्तिकारी हैं, ठीक है; महावीर समाज सुधारक हैं, ठीक है । आपका यह सब स्वीकार है, क्योंकि वह असत्य नहीं है । परन्तु मेहरबानो ! इससे परे कुछ और भी तो देखो, उसे भी यथा शक्ति चित्रित करो। यदि उस स्वरूप को चित्रित नहीं कर पाये तो महावीर का चित्र अधूरा रह जायेगा । वे केवल इतिहास की एक घटना बनकर रह जायेंगे | शाश्वतता जैसी कोई स्थिति महावीर के पास नहीं रहेगी । उभयमुखी जीवन-क्रान्ति के प्रतीक महावीर ___ महावीर उभयमुखी जीवन-क्रान्ति के प्रतीक हैं । वे अन्दर में परम अनन्त वीतरागी हैं | संसार के सुख-दु:ख उन्हें आकुल नहीं कर सकते, राग द्वेष के बड़े-से-बड़े प्रसंग उन्हें विक्षुब्ध नहीं कर सकते । अत: महावीर वीतराग पहले हैं, और तीर्थंकर बाद में | उन्होंने पहले पाने का प्रयत्न किया और देने का बाद में । पाने वाला ही तो देने वाला बन सकता है । खाली झोली में से भला क्या दिया जा सकता है ? अत: महावीर के अन्तरंग के विकास का, निर्विकारता का, परम वीतराग भाव का निरूपण इतना आवश्यक है, कि हम उसे एक क्षण के लिए भी छोड़कर या उपेक्षित कर एक कदम आगे नहीं चल सकते । यह महावीर शाश्वत एवं सनातन है | जैन दर्शन की भाषा में आदि अनन्त महावीर है | यह महावीर स्वयंभू है, स्वयं में स्वयं संभूत है | यह किसी काल विशेष, देश विशेष, परिस्थिति विशेष या परिवेश विशेष की उपज नहीं है, जिसे हम इतिहास का चश्मा लगाकर अढाई हजार वर्ष पूर्व के अतीत के अन्धकार में तलाशते फिरते हैं, पुरानी पोथियों के पन्ने उलटते-पलटते रहते हैं, पास-पड़ोस के तत्कालीन धर्मों एवं पंथों की गवाहियाँ इकट्ठी करके कागजों के ढेर पर ढेर लगाते जा रहे हैं। केवल वीतराग नहीं, तीर्थंकर भी साथ ही यह भी ध्यान में रखने जैसा है, कि वे केवल वीतराग ही नहीं, तीर्थंकर भी हैं, तीर्थंकर अर्थात् तीर्थ का कर्ता । बाहर में उसकी आँखें बन्द नहीं हैं । वह तत्कालीन धर्म एवं समाज के गले-सड़े नियमों का, (४६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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