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________________ से उनका कोई वास्ता ही नहीं था । ये लेखक भगवान महावीर के अनन्त ज्ञान का, अनन्त दर्शन का, अनन्त चारित्र आदि गुणों का वर्णन शास्त्रीय भाषा में करते हैं । उनकी वीतरागता का परम पारिणामिक भावरूप परमात्मतत्त्व का निरूपण ऐसा कुछ करते हैं, जैसे कि इन्होंने वस्तुतः उस परम तत्त्व का स्वयं साक्षात्कार कर लिया हो ! यह ठीक है कि उनका यह लेखन असत्य नहीं है । महावीर का अन्तरंग पक्ष ऐसा ही था । महावीर का अध्यात्मभाव तो अनन्त है। शास्त्रकार भी अनन्त के सम्बन्ध में कैसे कोई इति लगा पाते और जब शास्त्रकार ही इति नहीं लगा सके, तो हम तो होते ही कौन हैं ? हम उस अनन्त, असीम, अध्यात्मक्षीर सागर की दो चार बूँदों को ही देख पाए हैं, जान पाए हैं। वह भी शास्त्र की आँख से, अपनी निज की आँख से नहीं । अस्तु, मैं उन अध्यात्मवादी लेखकों पर कटाक्ष नहीं कर रहा हूँ, अपितु उनका आदर ही कर रहा हूँ, चलो कुछ लिखा तो है । मेरी शिकायत तो यह है कि यह सब एकांगी क्यों लिखा है ? कुछ ने तो दूसरे बाह्य पक्ष को बुरी तरह नकारा भी है । मैं कहता हूँ, यह नहीं होना चाहिए था । महावीर का मात्र समाज सुधारक रूप भी एक अधूरा चित्र है दूसरी ओर वे लेखक भी हैं, जो शब्दों के घटाटोप में महावीर को केवल एक समाज सुधारक, समाज के दर्द से पीड़ित, एक महान् क्रान्तिकारी के रूप में उपस्थित करते हैं । उन्होंने समाज के मंगल-कल्याण के लिए राज्य छोड़ा, परिवार छोड़ा, सुख सुविधाएँ छोड़ी, मोह-माया छोड़ी और फिर समाज के शूद्र, पीड़ित एवं दलित वर्ग के लिए यह किया, वह किया । यज्ञ एवं बलिदानों से मूक पशु-पक्षियों के प्राणों की रक्षा की । मानव होते हुए भी मूक पशु के समान निरीह जीवन बिताने वाले दासों का उद्धार किया | मातृजाति को भी पातालमुखी गर्त से उबार कर उसे पुरुषों के समकक्ष ऊँचाई पर लाये । उक्त लेखन में महावीर के जनजागरण रूप कर्म का स्वर मुखरित होता है, उनकी करुणा के दिव्य दर्शन होते हैं । मैं इन क्रान्तिवादी लेखकों का हृदय से स्वागत एवं समादर करता हूँ । किन्तु शिकायत मेरी इन से भी है । मैं यह नहीं कहता कि यह वर्णन असत्य है या अनावश्यक है । मेरी शतप्रतिशत उक्त विधा के लेखन के साथ सहमति होते हुए भी मैं कहता हूँ 'यह भी महावीर की अधूरी तसवीर है ।' महावीर यह सब है, पर इन से परे और गहरे में वे और कुछ भी हैं । सागर की सक्रिय लहरों को जो हम सागर के वक्ष पर नाचते, (४५) Jain Education International — For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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