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________________ नारी के अन्दर में कहीं वात्सल्यपूर्ण मातृत्व छिपा है, तो कहीं विशुद्ध बन्धुता से पूर्ण भगिनीत्व छिपा है। कहीं सुख-दुख के हर क्षण में छाया के समान साथ चलने वाला स्नेह - सिक्त सहचरीत्व (पत्नीत्व ) रहा हुआ है तो कहीं माता-पिता का सहज स्नेह लिए भावनामूर्ति पुत्रीत्व प्रतिबिम्बित है । जब तक नारी के इन तथा इन जैसे अन्य अनेक आन्तरिक दिव्य रूपों को नहीं देखा जाएगा तब तक विश्व समाज का आधा अंग अपंग, कुरूप एवं पक्षाघात - पीड़ित ही रहेगा । और आप जानते हैं, इस प्रकार का क्रियाशून्य अर्धशरीर समग्र शरीर को धीरे-धीरे श्मशान घाट की ओर ही ले जाता है । प्रस्तुत १९७५ का वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में नारी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है । सौभाग्य से यही वर्ष नारी जाति की गरिमा को चार चाँद लगाने वाले नारी मुक्ति के महान मंत्रदाता श्रमण भगवान महावीर का २५०० वाँ निर्वाण वर्ष भी जनजीवन में इतिहास का रूप ले रहा है । इधर निर्वाण वर्ष के उत्सवों एवं आयोजनों की चतुर्दिक झनकार है, और उधर नारी वर्ष के उद्घोष भी यत्र तत्र गूँज रहे हैं । मैं समझता हूँ यह अनायास ही एक भव्य संयोग जन जीवन को प्राप्त हुआ है । हमें इस शुभ संयोग का हृदय की तीव्रता के साथ लाभ उठाना चाहिए । भगवान महावीर के नारी मुक्ति सम्बन्धी दिव्य सन्देशों को केवल वाणी का ही नहीं अन्दर में मन का और बाहर में कर्म का रूप भी देना चाहिए । मध्यकाल से नारी निरन्तर अपने मौलिक अधिकारों से वंचित होती आ रही है, देवी से उसने निरीह मूक दासी का रूप ले लिया है । लिया क्या है, पुरुष के अज्ञान एवं अहं ने उसे बलात् वह रूप दे दिया है । युग बदल रहा है, युग के स्वर बदल रहे हैं । युग की पुकार है नारी को अपनी वह प्राचीन गरिमा पुनः मिलनी चाहिए । वह पुरुष के पीछे नहीं, आगे भी नहीं ठीक बगल में बराबर के कदमों से चलेगी, हर कर्म में सहचरी बनेगी, तभी मानव जाति के अधूरे स्वप्न पूरे होंगे, मरने के बाद नहीं, जीते जी ही मानव जाति को स्वर्ग का आनन्द मिलेगा । मई १९७५ Jain Education International (४३) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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