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अकर्म को ही धार्मिकता एवं पवित्रता का मानदण्ड समझ लिया गया; स्वयं कुछ न करके दूसरों के द्वारा किए गए कर्म एवं श्रम का लाभ उठाने में ही अपना श्रेष्ठत्व समझा जाने लगा, तभी से भारत का पतन होता चला गया, स्वर्गोपम धरती पर नरक का राज्य स्थापित हो गया ।
जैन परम्परा के आदितीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव ने मानवजाति को कर्म की शुद्ध दृष्टि दी थी। उनके युग तक मानवजाति वन्यजीवन की यात्रा पर, प्रकृति की सहज उपलब्धियों पर अपनी आवश्यकतापूर्ति कर रही थी । परन्तु जब इधर जनसंख्या बढ़ी और उधर प्रकृति से प्राप्त साधन-सामग्री क्षीण होने लगी, तो जनता भुखमरी की स्थिति में पहुँच गयी। सब ओर हाहाकार प्रतिध्वनित होने लगा । भूखा मरता, क्या न करता ? परस्परद्वन्द्व बढा, छीनाझपटी होने लगी । युगद्रष्टा ऋषभदेव ने कर्म की घोषणा की । जैन इतिहास कहता है- भगवान ऋषभदेव ने धरती पर के झाड़-झंखाड़ एवं ऊँचे-नीचे टीले साफ कराये, समतल खेत बनाये और लोगों को खेती करने की शिक्षा दी | कुम्हार और लुहार आदि के उद्योग भी प्रचलित किए । इस प्रकार उनके द्वारा अकर्मभूमि-युग कर्मभूमि-युग में परिवर्तित हुआ । प्रश्न है, भगवान का यह कर्म पापकर्म था या पुण्यकर्म ? आज के कुछ तथाकथित धर्माभिमानी जैनों की मान्यता के अनुसार यह पापकर्म है, तो फिर पुण्यकर्म कौनसा होगा ? लोग भूखे मर रहे थे तो अपने पापकर्म से मर रहे थे । उनके मरने का पाप भगवान को तो नहीं लग रहा था! फिर भगवान ने व्यर्थ ही यह कृषि आदि का पापकर्म किया, और कराया, जो तब से अब तक चला आ रहा है । स्पष्ट है कि भगवान ने वैयक्तिक कर्म को और उसके द्वारा प्राप्त होने वाले फल की वैयक्तिक उपभोगदृष्टि को सामाजिक रूप दिया । और इस प्रकार सर्वजनहित की दृष्टि से वह कर्म व्यापक आयाम के साथ पुण्य की भूमिका में पहुँच गया । कर्म में से क्षुद्रता का विष निकल गया
और उसमें जनहित की भूमिका का अमृत समा गया । खेद है, मध्यकाल की कुछ शताब्दियों से जैन-समाज भगवान ऋषभदेव के सामाजिक आदर्शों को भुला बैठा, जिसके फलस्वरूप कुछ ऐसे धर्मध्वजी लोग मैदान में आ खड़े हुए, जिन्होंने आँख बन्द कर घोषणाएँ शुरू कर दी कि खेती करना महारंभ है, महापाप है, कुम्हार, लुहार, तेली आदि के उद्योग कर्मादान हैं, अर्थात पापादान हैं, पाप के केन्द्र हैं । अहिंसा का साधक जैन यह कर्म किसी भी हालत में नहीं कर सकता। दुकान पर बैठ कर भले ही कोई सुबह से शाम तक हजार झूठ बोलता रहे, चोरी करता रहे, कम तौलता रहे, मिलावट करता रहे, इसकी कोई चिन्ता नहीं।
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